रविवार, 6 जुलाई 2014

हैरतअंगेज, अरबो का खजाना दबा पड़ा हिमाचल की इस झील में

आज हम आपको एक ऎसी झील के बारे में बताने जा रहे है जिसके बारे में कहा जाता है की उसमे अरबो रूपए का खजाना दफन है।there is a hidden treasure in this stream
यह है हिमाचल प्रदेश के पहाड़ो में स्थित कमरूनाग झील।

पूरे साल में 14 और 15 जून को यानी देसी महीने के हिसाब से एक तारीख और हिमाचली भाषा में साजा। गर्मियों के इन दो दिनों में बाबा कमरूनाग पूरी दुनिया को दर्शन देते है। इसलिए लोगों का यहां जन सेलाव पहले ही उमड़ पड़ता है। क्योंकि बाबा घाटी के सबसे बड़े देवता हैं और हर मन्नत पूरी करते हैं।

हिमाचल प्रदेश के मण्डी से लगभग 60 किलोमीटर दूर आता है रोहांडा, यहीं से पैदल यात्रा शुरू होती है। कठिन पहाड़ चड़कर घने जंगल से होकर गुजरना पड़ता है। इस तरह लगभग 8 किलोमीटर चलना पड़ता है।

कहां से आया यह खजाना?
मंदिर के पास ही एक झील है, जिसे कमरूनाग झील के नाम से जाना जाता है। यहां पर लगने वाले मेले में हर साल भक्तों की काफी भीड़ जुटती है और पुरानी मान्यताओं के अनुसार भक्त झील में सोने-चांदी के गहनें तथा पैसे डालते हैं। सदियों से चली आ रही इस परम्परा के आधार पर यह माना जाता है कि इस झील के गर्त में अरबों का खजाना दबा पड़ा है।

बाबा कमरूनाग की पौराणिक गाथा
कमरूनाग जी का जिक्र महाभारत में भी आता है। इन्हें बबरूभान जी के नाम से भी जाना जाता था। ये धरती के सबसे शक्तिशाली योद्धा थे। लेकिन कृष्ण नीति से हार गए। इन्होने कहा था कि कौरवों और पांडवों का युद्ध देखेंगे और जो सेना हारने लगेगी में उसका साथ दूंगा। लेकिन भगवान् कृष्ण भी डर गए कि इस तरह अगर इन्होने कौरवों का साथ दे दिया तो पाण्डव जीत नहीं पाएंगे।

कृष्ण जी ने एक शर्त लगा कर इन्हे हरा दिया और बदले में इनका सिर मांग लिया। लेकिन कमरूनाग जी ने एक खवाइश जाहिर की कि वे महाभारत का युद्ध देखेंगे। इसलिए भगवान् कृष्ण ने इनके काटे हुए सिर को हिमालय के एक उंचे शिखर पर पहुंचा दिया। लेकिन जिस तर्फ इनका सिर घूमता वह सेना जीत की ओर बढ्ने लगती।

तब भगवान कृष्ण जी ने सिर को एक पत्थर से बाँध कर इन्हे पांडवों की तरफ घुमा दिया। इन्हें पानी की दिक्कत न हो इसलिए भीम ने यहाँ अपनी हथेली को गाड कर एक झील बना दी।

खजाने की चोरी करने वाले को सजा
यह भी कहा जाता है कि इस झील में सोना चांदी चढ़ाने से मन्नत पूरी होती है। लोग अपने शरीर का कोई भी गहना यहाँ चढ़ा देते हैं। झील पैसों से भरी रहती है, ये सोना-चांदी कभी भी झील से निकाला नहीं जाता क्योंकि ये देवताओं का होता है।

ये भी मान्यता है कि ये झील सीधे पाताल तक जाती है। इस में देवताओं का खजाना छिपा है। हर साल जून महीने में 14 और 15 जून को बाबा भक्तों को दर्शन देते हैं। झील घने जंगल में है और इन् दिनों के बाद यहाँ कोई भी पुजारी नहीं होता। यहाँ बर्फ भी पड़ जाती है।

यहाँ से कोई भी इस खजाने को चुरा नहीं सकता। क्योंकि माना जाता है कि कमरूनाग के खामोश प्रहरी इसकी रक्षा करते हैं। एक नाग की तरह दिखने बाला पेड इस पहाड के चारों ओर है। जिसके बारे मे कहते हैं कि ये नाग देवता अपने असली रूप में आ जाता है। अगर कोई इस झील के खजाने को हाथ भी लगाए।

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