रविवार, 29 जून 2014

बालक भगवान के समान है, उससे श्रम करवाना पाप है


बालक भगवान के समान है, उससे श्रम करवाना पाप है

लेखक:- गिरिराज गज्ज (एडवोकेट)
आज कल समाज में छोटी-छोटी बात को लेकर पारिवारीक झगडे बढ़ रहे हैं, जिसका अनुसरण कर बालक भी उसमें लिप्त हो जाते है, बालकों में यह प्रकृति आजकल निरन्तर बढ़ रही है। प्रषासन को इस बारें में कुछ कठोर निर्णय लेने चाहिये, और बालकों को इस प्रवृति से दूर रखने के लिये, उनको विद्यालयों में अच्छे साहित्य, और महापुरूषों की जीवनी का पठन करवाना चाहियें, उसके साथ साथ समाज के मौजिज व्यक्यिों को इस प्रकार के बालकों को सीधे रास्ते पर लाने के लिये विचार करना चाहिये। उनके द्वारा किये जा रहे अपराधों पर अकंुष लगाने के लिए, उनके पीछे किन व्यक्तियों का हाथ है, उनको प्रषासन द्वारा उनके सहयोगी के रूप में मुल्जिम बनाना चाहिये, आज कल समाज में बालकों के माध्यम से अपराध करवाने का कार्य भी किया जा रहा है। छोटे-छोटे बालक चोरीयों में लिप्त होकर धीरे-धीरे आगे जाकर बडी चोरीयों को अंजाम देने से नही चूकते है। बालक जो चोरी करते है, उनके द्वारा की चोरी में कौन कौन लाभ ल रहा है, उस विषय पर अनुसंधान प्रषासन को करना चाहिये, और उनके सहयोगीयों को भी पाबन्द करना चाहिये।

जब बालक बाल्य अवस्था मंे ही चोरी, डकैती, लूट व मारपीट और उससे भी ज्यादा अपराध करने शुरू कर देते है तो समाज में उसका विपरीत प्रभाव ही पड़ता है, और वह बालक जो एक बार बाल अपराधी के रूप में अपनी मन की बातें अन्य बालकों को सुनाते है तो वह भी उसी पथ पर चलने का मन बना लेते है। इसलिये बाल अपराधी के रूप में बालकों को कुछ दिन सुधार गृह में रखकर उन्हें महापुरूषों की जीवनी का अध्ययन करवाना चाहियें, उसके साथ साथ उन्हें धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन भी करवाना चाहिये। बालको के परिवार जनो को भी इस विषय में गोष्ठी के माध्यम से जानकारी देनी चाहिए अगर कोई बालक इस प्रकार की बदमाषी करे तो उसको सह नही देकर तुरन्त उसे सुधारने का प्रयत्न किया जाना चाहिये। सरकार ने बालकों के उपर गलत प्रभाव नही पड़े उसके लिये किषोर न्याय बोर्ड का गठन किया गया है, जहाॅं पर बाल अपचारीयों के मुकदमों का निस्तारण किया जाता है लेकिन कुछ बालक इस प्रक्रिया का लाभ लेकर शातिर अपराधी बन जाते है, और जब इस प्रकार तुरन्त ही उनको प्रकरण से राहत मिल जाती है, तो वह समाज के अन्य बालकों को अपने वृतान्त सुनाकर अपनी ओर अग्रसर करते है। सरकार की मंषा तो यह होती है कि बालको पर गलत प्रभाव न पड़े लेकिन उसके विपरीत वह बालक बाहर जाकर अपने अन्य मित्रों को अपने वृतान्त सुनाकर अपने कार्य को सही बताते है। जबकि ऐसे बाल अपचारीयों को कम से कम दो तीन दिन सुधार गृह में भेजकर कुछ प्रयत्न किये जावे तो, हो सकता है कि कुछ बालक सुधर जाने और उसके कारण समाज की नींव इन बालको के अपराध की प्रवृति कम हो सकें। समाज में बालको में सुधार होने से आने वाली पीढी अच्छी ईमानदार और देष व समाज के प्रति अच्छी सोच रखने वाली हो सकती है।

बालको में बढती अपराध की प्रकृति समाज को पतन के गर्त में ले जाती है, और बालक धीरे-धीरे इस अपराध की दुनिया का हिस्सा बन जाते है। बालको के लिये बने कानून का लाभ बालको को मिलना चाहिये, लेकिन उनको इन कामों में सहयोग करने वाले बालिग व्यक्तियों के प्रति प्रषासन को अपनी सोच बदल कर, उन सभी विषयों पर उचित निर्णय उठाना होगा जिससे बालक निरन्तर इन अपराधो का हिस्सा नही बन सके। बालको को सुधारना प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है, वह भगवान का रूप् होते है, वह मिट्टी के समान होते है, उनको जिस तरह पढेगे वो उस रूप् में बन जायेगे। अर्थात् उनको अच्छे संस्कार दिये जाने के लिये ही सुधार गृह बनाये जाते है, उनको उसमें रखकर संस्कारित किया जा सकता है।

इस बढती प्रवृति को रोकने के लिये समाज के सभी व्यक्तियों को अपनी अच्छी सोच रखकर अपने-अपने बालको को अच्छे संस्कार दिये जाने चाहिये जिससे समान का विकास हो सके।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें