मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

भगत सिंह को निर्दोष साबित करने के लिए पाकिस्तान की अदालत में याचिका



लाहौर
भारत की आजादी के लिए कुर्बानी देने वाले भगत सिंह को शहीद का दर्जा भले मिल गया हो लेकिन उन पर लगे आरोप आज भी कायम हैं। इन्हीं आरोपों से उन्हें निर्दोष साबित करने के लिए पाकिस्तान में एक कानूनी जंग शुरू हुई है। इसी के तहत 1928 में लाहौर के तत्कालीन सीनियर पुलिस एसपी की हत्या के मामले में भगत सिंह के खिलाफ दर्ज एफआईआर की कॉपी मांगी गई है, ताकि इन महान स्वतंत्रता सेनानी को निर्दोष साबित किया जा सके।

याचिकाकर्ता भगत सिंह मेमोरियल के अध्यक्ष इम्तियाज राशिद कुरैशी ने जॉन पी सैंडर्स की कथित रूप से की गई हत्या को लेकर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू के खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी की सत्यापित प्रति की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय ने 11 अप्रैल को पुलिस को इस प्राथमिकी की प्रति कुरैशी को देने का आदेश दिया था। सोमवार को सुनवाई के दौरान कुरैशी ने अदालत से कहा कि उन्होंने पुलिस को अदालत का आदेश दिखाया था, लेकिन उसने उन्हें प्राथमिकी की प्रति देने से इनकार कर दिया। इसके बाद सत्र अदालत ने लाहौर पुलिस के प्रमुख चौधरी शफीक को अदालत के आदेश का पालन करने के सिलसिले में नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दी है।
bhagat singh
कुरैशी ने कहा कि पंजाब पुलिस के कानूनी मामले विभाग के पास सन 1895 से 1928 तक के रिकॉर्ड हैं, लेकिन पुलिस ने 1928 में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की हत्या के सिलसिले में दर्ज की गई एफआईआर उन्हें देने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि सिंह के मामले की सुनवाई करने वाले न्यायाधिकरण ने 450 गवाहों को सुने बगैर ही भगत सिंह को मृत्युदंड सुनाया। सिंह के वकीलों को उनसे जिरह करने का मौका नहीं दिया गया।

 कुरैशी ने सिंह के मामले को फिर से खोलने की मांग करते हुए लाहौर हाईकोर्ट में भी एक याचिका दायर की है। उन्होंने कहा, 'मैं इस हत्याकांड में उन्हें निर्दोष साबित करना चाहता हूं।' लाहौर हाईकोर्ट ने इस सिलसिले में ग्रेटर बेंच बनाने के लिए मामले को मुख्य न्यायालय को भेज दिया है। गौरतलब है कि लाहौर साजिश कांड में भगत सिंह की कथित संलिप्तता को लेकर सुनवाई के बाद ब्रिटिश सरकार ने सिंह को 23 मार्च 1931 को 23 साल की उम्र में फांसी पर लटका दिया था।

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