मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

बालविवाह रोकने के लिये सभी को आगे आने की जरूरत - सिंह

बालविवाह रोकने के लिये सभी को आगे आने की जरूरत - सिंह

बाडमेर 29 अप्रेल ( ) आखातीज का त्योहार गांवो में आज भी अबूझ सांवे के रूप में मानने के साथ इसदिन पंडित से पूछे बिना कोई भी वैवाहिक कार्य शुभ माना जाता है ।

इसी कारण गांवो में विशेषकर लडकी को परायी अमानत समझ कर उसका विवाह जल्दी कराने की परम्परा रही है । परन्तु अब जागरूकता एंवम शिक्षा के बढावे के साथ कानूनी सख्ती के चलते बालविवाहो पर सख्ती से रोक लगी है ।

ये बात भारत सरकार के क्षेत्रीय प्रचार कार्यालय द्वारा नेहरू युवा केन्द एंवम केयर इन्डिया के सहयोग से चूली ग्राम पंचायत के लूणू नाडी पर आयोजित बालविवाह सामाजिक अभिशाप विषयक गोष्ठी को सम्बोन्धित करते सामाजिक कार्यकत्र्ता छेलसिंह ने व्यक्त किये । उन्होने बताया कि बाल विवाह से सबसे ज्यादा परेशानी का सामना लडकियो को करना पडता है उन्हे विवाह के बारे में कोई समझ नही होती है । ना ही वो शारीरिक रूप से इसके लायक होती है । समय से पहले मिली जिम्मेदारी उन्हे जीवन भर अनेक बीमारियो से ग्रसित कर देता है । अभिभावको को अपनी लाडली के जीवन को खुशियो से भरने के लिये उनका विवाह अठारह वर्ष से पूर्व न करने का सकल्प दिलवाया ।

इस अवसर पर क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी ने बताया कि बाल्यवस्था बच्चो के शिक्षा ग्रहण करने के साथ अपने लिये अच्छे रोजगार की तलाश के बाद अपने पैरो पर खडे होने के पश्चात विवाह के बंन्घन में बाघने के लिये अभिभावको को प्रयास करने चाहिये । उन्होने कहा कि विवाह खुशियो का मिलन होता है ऐसे में की गयी कोई गलती किसी के जीवन को हमेशा के लिये बीमार करें ऐसे प्रयासो से बचना चाहिये । प्रचार कार्य को सफल बनाने में दिलीपसिंह एंवम कन्हैयालाल राठोड का सराहनीय सहयोग रहा ।

डीएफपी बाडमेर द्वारा इस अवसर पर बालविवाह से होने वाली हानिया पर मोखिक प्रश्नोतरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें विजेता दस प्रतिभागियो को कार्यालय द्वारा पुरस्कार प्रदान किये गये ।कार्यालय द्वारा इस अवसर पर बालविवाह न करने एंव किसी भी बाल विवाह में शिरकत न करने का संकल्प भी ग्रामीणो को दिलवाया गया ।

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