बुधवार, 31 जुलाई 2013

रीत का रायता बनी जनसुनवाई

रीत का रायता बनी जनसुनवाई

बाड़मेर। जिला मुख्यालय पर मंगलवार को महिला आयोग की जनसुनवाई रीत का रायता बनकर रह गई। सरकारी तंत्र ने 150 के करीब आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और आशा सहयोगिनियों को बुलाकर टाउन हॉल की सीटों को भरा। इसके बाद 44 महिलाएं रही जिनकी सुनवाई डेढ़ घंटे में ही निपट गई।

महिला आयोग की अध्यक्ष श्रीमती लाडकुमारी जैन को सुबह 10 बजे जनसुनवाई करनी थी, लेकिन वे करीब दोपहर 12 बजे पहुंची। यहां आधा टाउन हॉल खाली था, आधी सीटों पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहयोगिनियों को बुलाया गया था। जिनकी संख्या करीब डेढ़ सौ थी। संबोधन सत्र को इन्होंने सुना और इसके बाद रवाना हो गई।

यह हुई कार्रवाई
यहां 44 महिलाओं को बुलाया गया। उनके आवेदन लिए। विभागीय अधिकारियों को बुलाकर उनसे कार्य नहीं होने का कारण पूछा गया। इन मामलों में शीघ्र कार्रवाई के निर्देश दिए गए। संख्या कम होने से डेढ़ घंटे में यह सारी कार्रवाई निपट गई। स्वयं महिला आयोग की अध्यक्ष ने संवाददाताओं के सवाल के जवाब में कहा कि प्रचार प्रसार नहीं होने से संख्या कम रही।

अधिकारी रहे मौजूद
जिला कलक्टर भानुप्रकाश एटूरू, पुलिस अधीक्षक राहुल बारेठ, अतिरिक्त जिला कलक्टर अरूण पुरोहित, महिला एवं बाल विकास के अशोक गोयल सहित अन्य अधिकारी मौजूद रहे। जनसुनवाई में जिला प्रमुख मदनकौर, विधायक मेवाराम जैन, नगरपरिषद सभापति उषा जैन उपस्थित रही।

एक बेटे की आत्महत्या दूसरा गुम
बाड़मेर शहर के एक परिवार ने शिकायत की कि सूदखोरों के चक्कर में फंसे उनके एक बेटे ने आत्महत्या कर ली और दूसरा घर से गायब है। इस मामले में मदद की जाए।

नहीं मिल रहे गेहूं: एक महिला ने शिकायत की कि उसको राशन के गेहूं व बीपीएल की सुविधाएं नहीं मिल रही है।

बजट जारी करवाओ
उदाराम मेघवाल ने कहा कि अनुसूचित जाति जनजाति पर अत्याचार के मामलों में बजट नहीं होने से मदद नहीं मिल रही, राज्य सरकार से बजट जारी करवाओ।

रो पड़ी महिलाएं और बच्चे
दहेज प्रताड़ना, तलाक, परिवार व बच्चों को छोड़ने के मामलों में अपनी व्यथा बताते हुए महिलाओं व बच्चों के आंसू निकल पडे। इनको ढाढ़स बंधाते हुए कार्रवाई का भरोसा दिया।

बोलती कुछ हूं लिखते कुछ है
महिला आयोग अध्यक्ष रवाना हुई तो बाड़मेर शहर की एक विवाहिता ने शिकायत की कि आपको चिट्ठी लिखी। पुलिस को आपने बयान के निर्देश दिए। मैं बोलती कुछ हूं और लिखा कुछ जाता है। इस पर जैन ने निर्देश दिए कि अब ऎसा नहीं होना चाहिए।

अब झाडियों में फेंक रहे है भ्रूण
राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष श्रीमती लाडकुमारी ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि पहले कन्याभू्रण हत्या होती थी। सिटीस्केन मशीनों पर प्रतिबंध लगाया तो अब कन्याभ्रूण को झाडियो में फैंकने की घटनाएं बढ़ रही है। इसके लिए समाज को सशक्त होना पड़ेगा। पुलिस की भूमिका ऎसी हों कि गुण्डागर्दी वाले तत्वों में डर रहे। उन्होंने कहा कि बाड़मेर जिले से महिला उत्पीड़न के 69 प्रकरण हमारे पास आए है। यहां ऎसा कोई नहीं बता रहा है। 44 की सुनवाई तो आज हुई है।

सितंबर माह तक जिला स्तरीय जन सुनवाई जारी रहेगी। दूर दराज के लोग जयपुर नहीं आ सकते हंै। जिला स्तरीय जनसुनवाई का उन्हें फायदा मिलेगा। यह दुर्दशा है कि महिला उत्पीड़न के 40 से 50 प्रतिशत मामले न्यायालय से इस्तगासा आने के बाद दर्ज हो रहे हैं। पुलिस सीधा दर्ज नहीं कर रही है। महिलाओं के मामले में वकील की फीस भी नहीं लगती। विधिक सहायता मुफ्त है लेकिन जानकारी के अभाव में इसका उपयोग नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि अपराध पहले भी था, लेकिन महिलाएं जागरूक नहीं थी। अब जागरूकता के कारण प्रकरण सामने आ रहे हंै।

राज्य महिला आयोग "पुलिस" से परेशान
राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष लाडकुमारी जैन महिलाओं पर हो रहे उत्पीड़न के मामलों में जितनी परेशान नहीं है उससे कहीं ज्यादा शिकायतें उनको पुलिस से है। जिला स्तरीय जनसुनवाई में जैन का संबोधन पुलिस से शिकायतों के इर्द गिर्द रहा और उन्होंने यहां तक कह दिया कि मैं दु:खी हूं कि कानून का सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है।

498 ए का गलत उपयोग
जैन की पहली शिकायत थी कि पुलिस 498 ए का गलत उपयोग कर रही है। घरेलू हिंसा के मामलों में भी धारा 498 ए लगा दी जाती है। इस कारण आरोपी छूट जाते है और महिला का प्रकरण झूठा साबित हो जाता है।

अदमवकुआ लगा दिया
पुलिस 60 से 70 प्रतिशत मामलों में अदमवकुआ लिख देती है। जिसका मतलब महिलाएं नहीं समझ पाती है। मैं भी अब समझी हूं। इसका मतलब है वाकया घटा ही नहीं। इससे महिलाओं के मामले झूठे साबित हो रहे हैं।

पुलिस वालों को नहीं मामलों की जानकारी
महिला के बयान लेने व एफआईआर दर्ज करने वाले कई एसआई व एएसआई को कानून की जानकारी नहीं है। वे घरेलू हिंसा के मामलों को 498 ए में दर्ज कर देते हंै।

498 नहीं दहेज का कानून
उन्होंने कहा कि 498 ए को बदनाम किया जा रहा है। यह दहेज का कानून नहीं है। जो भी महिला हिंसा के अधिकतम मामलों में 498 ए जबरन घुसाया जा रहा है, जो महिला के पक्ष में नहीं है।

समझौते दिखावटी
जैन ने कहा कि पुलिस मे मामला दर्ज होने के बाद समझौते करवाए जाते है। 60 फीसदी समझौते दिखावटी होते है। समझौतों के बाद महिलाएं पीहर बैठी रहती है।

महिला डेस्क में मालखाने का सामान
महिला आयोग की अध्यक्ष ने यहां तक कहा कि कई थानों में महिला डेस्क के बोर्ड तो लगा दिए गए है लेकिन वहां मालखाने का सामान पड़ा रहता है।

छह महीने तक नोटिस तामिल नहीं
महिलाओं के मामले में तीन दिन में सम्मन तालीम होने चाहिए। न्यायालय से सम्मन जारी तो हो जाते हंै लेकिन पुलिसकर्मी छह माह तक तालीम नहीं करवाते हैं।

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