मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

84 के दंगे: ठीक से नहीं कटे थे 'केश' तो पुलि‍स ने भगा दि‍या

नई दि‍ल्‍ली. 84 के दंगों की भयावह त्रासदी आज भी दि‍ल्‍ली में बसे सैकड़ों सि‍ख परि‍वारों में हर रोज ठीक उसी तरह से रि‍स रही है, जैसे घाव सड़ जाने पर उसमें से मवाद रि‍सती रहती है। सिख सरकारी और अदालती कार्यवाही से बि‍लकुल भी संतुष्‍ट नहीं हैं। मंगलवार को जब कड़कड़डूमा कोर्ट ने सज्‍जन कुमार को बरी कि‍या तो दंगों का शि‍कार बने सि‍ख एक बार फि‍र से उबल पड़े । उनका कहना था कि मरहम की क्‍या बात करें, यहां तो सरकार बार बार घाव ही कुरेदने में लगी हुई है। प्रस्‍तुत है 84 के दंगों का शि‍कार बने कुछ सि‍खों की आपबीती, साथ ही दंगों के चश्‍मदीद रहे पत्रकारों के बयान...



मोहन सिंह: केश ठीक से नहीं कटा तो पुलि‍स ने भगा दि‍या

मोहन सिंह दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में रहते थे जहां सिखों के खिलाफ़ सबसे ज्यादा हिंसा हुई। मोहन सिंह के चलते ही यह संभव हुआ कि दंगों की सटीक जानकारी मीडि‍या को पता चल सकी। मोहन सिंह बताते हैं कि उन्‍होंने इंदिरा गांधी की हत्या के अगले दिन 1 नवंबर की उस भयावह रात दंगाइयों से बचते-बचाते एक साइकिल पर सवार होकर उन्होंने त्रिलोकपुरी से इंडियन एक्सप्रेस के दफ्तर तक का डरावना सफर तय किया और पत्रकारों को सिखों की हत्या के बारे में बताया।

राजस्थान में अलवर के रहने वाले मोहन सिंह शुरुआत में शाहदरा में कस्तूरबा नगर में रहते थे। वर्ष 1976 में वह त्रिलोकपुरी आए। उन्‍होंने बताया कि 31 अक्टूबर 1984 की शाम को रेडियो और टीवी पर इंदिरा गांधी की मौत की ख़बर सुनी। उसके बाद उन्‍होंने सरदारों के खिलाफ़ हिंसा की बात सुनी। शुरुआत में सबसे ज्यादा हिंसा सफ़दरजंग अस्पताल के पास हो रही थी। वह उसी इलाके में ऑटोरिक्शा चला रहे थे। वहां सिख ड्राइवरों की गाड़ियों पर हमले हो रहे थे। दूसरे दि‍न पुलिस ने उन लोगों को सुरक्षा का भरोसा दिलाया था और कहा था कि वो कोई दंगा नहीं होने देंगे।

शाम छह, सात बजे कत्लेआम शुरू हुआ। चारों ओर अंधेरा था। इलाके की बिजली, पानी काट दी गई थी। इलाके में करीब 200 लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी। वो लोगों को घर से निकालते, उन्हें मारते, फिर उन पर तेल छिड़ककर आग लगा देते। रात करीब साढ़ नौ बजे उन्‍होंने अपने बाल काटे और किसी तरह कल्याणपुरी थाने पहुंचे। थाने में पुलिसवालों को बताया कि उनके ब्लॉक 32 में बहुत सारे लोग मारे गए हैं और वहां लूटपाट जारी है। उन्‍होंने उनसे मदद की गुहार लगाई, लेकिन मदद करने के बजाय उन्होंने मोहन सिंह को यह कहकर भगा दिया कि वह भी एक सरदार हैं। दरअसल, उनके बाल ठीक से नहीं कटे थे। इस दंगे में मोहन सिंह के दो भाई मारे गए थे।



मनजीत सिंह: आज तक नहीं मि‍ली पि‍ता की लाश

मोहन सिंह की तरह मनजीत सिंह के परि‍वार की भी कहानी है। मनजीत सिंह तब 3 वर्ष के थे, जब 84 के दंगे हुए। दंगाइयों ने उनके पि‍ता को मौत के घाट उतार दि‍या। दंगाइयों ने पहले उनके मकान पर हमला बोला और उसे तहस नहस कर दि‍या। इसके बाद उनके पि‍ता को मकान के अंदर से घसीटते हुए बाहर ले जाया गया और बीच सड़क पर मौत के घाट उतार दि‍या गया। इतना ही नहीं, काति‍लों ने मनजीत सिंह के दस वर्षीय भाई पर जलते हुए टायर भी फेंके। दंगाई अपने साथ मनजीत के पि‍ता की लाश घसीटते हुए ले गए। उनके पि‍ता की लाश आज तक नहीं मि‍ली है।


आज भी सि‍हर उठते हैं पत्रकार

वरि‍ष्‍ठ पत्रकार राहुल बेदी और जोसेफ मल्‍लि‍कन आज भी दंगों के उन 72 घंटों को याद करके सि‍हर उठते हैं। राहुल बेदी ने त्रि‍लोकपुरी के ब्‍लॉक 32 का दंगा कवर कि‍या था। वह बताते हैं कि पूर्वी दि‍ल्‍ली में जो नरसंहार हुआ, वह पूर्वनि‍योजि‍त था। वहां तकरीबन 320 सि‍ख महि‍ला, पुरुष और बच्‍चे थे। सभी लोगों को दो दि‍नों के अंदर मार दि‍या गया। एक नवंबर को जब बेदी और जोसेफ दंगे की कवरेज कर रहे थे, दंगाइयों ने उन दोनों को भी नि‍शाना बनाया। राहुल बेदी बताते हैं कि मौके पर ऐसा लग रहा था कि जैसे सि‍खों का स्‍लाटर हाउस बना दि‍या गया हो। पुलि‍स मौके पर खड़ी होकर पूरी तरह से तमाशा देख रही थी। दंगाई और हत्‍यारों को देखकर ऐसा लग रहा था कि उन्‍हें कि‍सी बात की कोई जल्‍दी नहीं है। वह सि‍ख महि‍लाओं का बलात्‍कार कर रहे थे और उन्‍हें बुरी तरह से टॉर्चर करके उनकी हत्‍या कर रहे थे।
अरविंद्र सिंह: पूरा परि‍वार चढ़ा दरिंदगी की भेंट

दंगा पीड़ितों में एक रानियां के अरविंद्र सिंह जोकि रानियां वार्ड नं. 13 निवासी ने बताया कि दिल्ली दंगों को हुए भले ही 29 वर्ष गुजर चुके हैं लेकिन इन दंगों में पीड़ित कई सिख परिवारों को अब तक न तो कोई सरकारी सहायता मिली है और न ही कोई सामाजिक स्तर पर उनका पुनर्वास हुआ है। उन्होंने बताया कि 84 के दंगों के समय वह करीब 25 वर्ष के थे। उस समय मानवता के दरिदों ने उसके परिवार के 17 सदस्यों जिसमें पिता, 4 भाई, 3 भाभी, 4 भतीजी, 3 भतीजे, एक बहन व उसकी भानजी थे को गले में जलते टायर डाल कर व मिट्टी का तेल डालकर जिंदा जला दिया था। सीधे-सादे व्यक्तिव वाला अरविंद्र सिंह बात करते-करते रो पड़ता है।

अरविंद्र के अनुसार 1 व 2 नवम्बर 1984 का वह दिन था जब वह अपने पिता अजीत सिंह जो कि लकड़ी की तूंबियां व अन्य सामान बनाने का कार्य करते थे, के कहने पर पैसे लेने जनकपुरी में ही डाबरी मोड़ पर रहने वाले ताहिर हुसैन नकवी के घर गया था। इतने में दंगे शुरू हो गए। हुसैन उस समय घर पर नहीं थे व उनकी बेगम नाजिम उर्फ हुस्ना ने उसे अपना बुर्का पहनाकर छिपाया व उसकी जान बचाई। अरविंद्र के अनुसार जब वह छिपता-छिपाता उत्तम नगर के निकट स्थित गोपाल पार्क में अपने निवास आर-जैड 27 में पंहुचा तो उसका पूरा परिवार दरिंदगी की भेंट चढ़ चुका था। आग में जल चुके उसके पिता, 4 भाई, 3 भाभियां, 4 भतीजे, 3 भतीजियां, एक बहन व उसकी सवा वर्षीय बेटी के शव पहचान में नहीं आ रहे थे।

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