रविवार, 31 मार्च 2013

जमीन से निकली मोहरें सिंधु घाटी सभ्यता की, 94 मोहरें सरकारी कोष में जमा




जमीन से निकली मोहरें सिंधु घाटी सभ्यता की, 94 मोहरें सरकारी कोष में जमा





मोहरों पर है चित्र लिपि अंकित

लाडनूं
झंडा चौक में निर्माणाधीन भवन की खुदाई के दौरान निकली 94 प्राचीन मोहरें शनिवार को मकान मालिक लाभचंद प्रजापत ने राजकोष में जमा कराने के लिए उपखंड अधिकारी को सौंप दिए। इन सिक्कों पर मिली चित्र लिपि व अन्य संकेतों से ये सिंधु घाटी सभ्यता के होने की संभावना भी जताई जा रही है। 

उपखंड अधिकारी राजपाल सिंह ने इनकी गिनती व वजन कराने के बाद सीलबंद कर जिला कोषागार में जमा कराने भेज दिया। इस मामले में उन्होंने अनेक लोगों के बयान लिए। मकान मालिक को लिखित रूप से आगे खुदाई में किसी भी प्रकार की कोई प्राचीन वस्तु मिलने पर उसकी सूचना कार्यालय में देने के लिए पाबंद किया है। मोहरों का वजन कुल 400 ग्राम निकला।

एसडीएम राजपाल सिंह द्वारा अपने स्तर पर जांच की गई तो ये छोटे आकार की मोहरें वजन में भारी थीं। ये मटमैली थीं। हरी जंग लगी थी। इस मैल को मामूली रगडऩे पर नीचे सुनहरा रंग नजर आया। पत्थर पर घिसाई करने पर चांदी नुमा सफेदी दिखाई दी। इनकी धातु के बारे में कोई अनुमान नहीं लगाया जा सका। इन पर एक तरफ तीन मेखला वाली यज्ञवेदी का चित्र व कुछ लाइनों की अलग लिपि नजर आ रही थी, तो दूसरी तरफ अद्र्ध मानवाकृति, पीछे सर्पाकार आकृति आदि थी, जिन्हें देखने पर लगता है कि वह कोई चित्रलिपि है, जिसे फिलहाल पढ़ा जाना संभव नहीं है। उपखंड अधिकारी राजपाल सिंह का मानना है कि ये मोहरें करीब सात हजार साल पुरानी व सिंधु घाटी सभ्यता के समकालीन हो सकती हैं। इन पर अंकित लिपि व आकृतियां उसी सभ्यता से मिलती-जुलती नजर आ रही हैं। उन्होंने जिस लाल मिट्टी के कलश में ये मोहरें मिली थी, उसके टूटे टुकड़े भी सरकारी कोष में जमा करवाने के निर्देश मकान मालिक को दिए। ताकि उनकी कार्बन-डेटिंग की जा सके।

एसडीएम ने देखा मौका

उपखंड अधिकारी राजपाल सिंह ने ये मोहरें जमा करने के बाद स्वयं मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। मालिक लाभचंद प्रजापत को पाबंद किया कि वे चारों तरफ के पिलर बनवाने के अलावा भूमि के बीच के हिस्से में कोई निर्माण कार्य नहीं करवाए, ताकि उसका जायजा पुरातत्व विभाग के अधिकारी व विशेषज्ञ ले सकें।

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