गुरुवार, 31 जनवरी 2013

मारवाड़ियों का बेजोड़ रुप लावण्य एवं व्यक्तित्व

मारवाड़ियों का बेजोड़ रुप लावण्य एवं व्यक्तित्व
किसी भी समाज के व्यक्तित्व का विश्लेषण करने में उसके रुप-रंग और शारीरिक बनावट का विशेष महत्व होता है क्योंकि चरित्र अथवा व्यक्तित्व का आधार मात्र यह मानव शरीर ही है। प्रकृति ने मारवाड़ियों को सुन्दर, चित्ताकर्षक देह व रंग-रुप प्रदान किया है। रुप के पारखी यह भली-भांति जानते हैं कि भारतवर्ष में रुप-रंग व शारीरिक सुडौलता की दृष्टि से सुंदर लोग सौराष्ट्र से लेकर कश्मीर तक विशेष रुप से मिलेंगे पर उनमें भी मारवाड़ के लोगों का रुप तो सुन्दरतम कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।


मारवाड़ी पुरुष औसत मध्यम कद वाली होते हैं। उनका गेहुँवा अथवा लाल मिश्रित पीत वर्ण रुप-लावण्य का प्रतीक है। फिर उनके श्याम कुन्तल बाल, गोल शिर, मृगनयन, शुक-नासिका, मुक्ता सदृश्य दंत, छोटी मुँह-फाड़ व ओष्ठ, गोल ठोड़ी, दबी हुई हिचकी, लंगी ग्रीवा, भौहों से भिड़ने वाली बिच्छु के डंक तुल्य काली मूंछे व नारियल के जटा सी लम्बी दाढ़ी, केहरी कटि व छाती, लंबे हाथ व नीचे का मांसल तंग को प्रकृति ने बड़ी चतुराई से बनाया है।


जिन प्रदेश के पुरुषों का रुप भी जब इतना मन-मोहक है तब उन माताओं के रुप-लावण्य का तो बखान कहाँ तक करें जिनके कोख से सुडौल सन्तति का जन्म होता है। माखण, भूमल, सूमल, भारमली, जैसी अनिंद्य सुन्दरियों की कहानियाँ कपोल-कल्पित नहीं हैं वरन् गाँव-गाँव में ऐसी पद्मनियां देखी जा सकती है। पूंगलगढ़ की पद्मनियां तो जग-विख्यात रही हैं, जिनका पूर्वी भाग मारवाड़ प्रदेश के अंतगर्त आता है। ऐसी पद्मनियां जब सोलह श्रृंगार कर निकलती है तो इन्द्र की अप्सराओं के तुल्य प्रतीत होती हैं।


यहाँ के नर-नारियों का वर्णन किसी कवि के द्वारा इस प्रकार मिलता है:-


१. सदा सुरंगी कामण्यां, औढ़े चंगा वेश ।
बांका भड़ खग बांधणां, अइजो मुरधर देश ।।

२. गंधी फूल गुलाग ज्यूं, उर मुरधर उद्यांण ।
मीठा बोलण मानवी, जीवण सुख जोधांग ।।


मारवाड़ के नर-नारियों के रुप का जितना बखान करें उतना अल्प रहेगा पर उससे भी अधिक महत्वपूर्ण यहां के जनसाधारण का उच्च वयक्तित्व है। युगों के संस्कारमय जीवन ने मारवाड़-वासियों के व्यक्तित्व को बारीकी से तराशा है। सरल स्वभाव, वचन पालन, अतिथि सत्कार, आडम्बर शून्यता, कुशल व्यवहार, परिश्रमी जीवन, मीठी बोली, आस्त्कि, मारवाड़ी वयक्तित्व के अभिन्न अंग हैं। ये सभी लक्षण न्यूनाधिक रुप में सत्पुरुषों के गुणों के नजदीक हैं जैसा कि कवि-कुल-शिरोमणि बाल्मीकि ने कहा है, "प्रशमश्च क्षमा चैव आर्जव प्रियवादिता' अर्थात शांति, क्षमा, सरलता और मधुर भाषण ये सत्पुरुषों के लक्षण हैं। जनसाधारण के व्यक्तित्व स्तर से ऊपर यहां के अधिक संस्कार संपन्न समुदायों में व्यक्तित्व का वह उच्च स्तर अभी भी देखने को मिलता हैं जो आज के भौतिक व भोग प्रधान युग में लगभग समाप्त हो चुका है। जिसका आकलन एक दोहे के द्वारा इस प्रकार किया गया है:-



काछ द्रढ़ा, कर बरसणां, मन चंगा मुख मिट्ठ ।
रण सूरा जग वल्लभा, सो राजपूती दिट्ठ ।।



मारवाड़ी समाज में चोरी और जोरी को "अमीणी' (कलंक) अथवा सबसे हेय दृष्टि से देखा जाता है। जिस व्यक्ति में ऐसी दुर्बलातायें हो उसे समाज सदैव पतित मानता है। आम मारवाड़ी लोगों का चोरी व जोरी विमुक्त व्यक्तित्व उच्च सांस्कृतिक स्तर का परिचायक है। मारवाड़ी व्यक्तित्व के जैसा है तथा पाश्चात्य जगत् की दोहरे व्यक्तित्व से यह काफी दूर है। यहां जीवन को सार्वजनिक व घरेलू या निजी जीवन की काल्पनिक परिधियों में बांटा गया है। वस्तुतः मनुष्य की समस्त कियाओं का योग ही उसका व्यक्तितव है।

वचन पालन मारवाड़ी समाज के व्यक्तित्व का प्रधान गुण है। रघुवंशियों द्वारा युगों पूर्व प्रतिपादित इस आर्याव
देश में "प्राण जाए पर वचन न जाए' का आदर्श मारवाड़ियों के रोम-रोम में समाया हुआ है। सगाई-विवाह, व्यापार, रुपये, सोना-चाँदी, पशुधन, जमीन-जायदाद आदि सभी का लेन-देन केवल जबान पर या केवल मौखिक स्वीकृति पर होते हैं। एक बार कह दिया सो लोहे की लकीर। समाज में ऐसे ही लोगों का यशोगान होता है:-



मरह तो जब्बान बंको, कूख बंकी गोरियां ।
सुरहल तो दूधार बंकी, तेज बंकी छोड़ियाँ ।।

मारवाड़ के सत्-पुरुषों के वचन पालन की जीवन घटनाएँ हमारी संस्कृति और इतिहास की बड़ी महत्वपूर्ण घटनाएँ है। पाबूजी राठौड़ द्वारा देवल चारणी को दिए वचन, वीर तेजा जी के लाछा गूजरी व विशधर सपं को दिए गए वचन, बल्लू जी चंपावत द्वारा अपने पिता गोपीनाथ जी, अमरसिंह जी राठौड़ व उदयपुर महाराणा को दिए गए वचन, जाम्भोजी द्वारा राव हूदा जी (मेड़ताधिपति) को दिए वचन आदि की कहानियों से मारवाड़ की संस्कृति व इतिहास से लोग सुपरिचित हैं। ये लोग यह भी भली-भांति जानते हैं कि मारवाड़ में जगह-जगह वचनसिद्ध महापुरुषों के दृष्टांत विद्यमान हैं जो मरुवासियों को सतत् प्रेरणा देते रहेंगे।

अतिथि सत्कार की उत्कृष्ट भावना मारवाड़ियों के व्यक्तित्व में चार-चांद लगा देती है। उनका अतिथि सत्कार जग विख्यात रहा है। इसका राज यह है कि मारवाड़ में "मेह' (वर्षा) तो बहुत कम होती है पर यहाँ "नेह' (स्नेह) का सरोवर सदा भरा रहता है। यहाँ एक लोक उक्ति बड़ी प्रचलित है कि "धरां आयोड़ो ओर धरां जायोड़ो बराबर हुवे हैं।' अर्थात घर पर आया अतिथि घर के पुत्र-पुत्री के समान होता है। अतिथि की आवभगत करना एक पुण्य अर्जित करने जैसा कार्य है। वैदिक संस्कृति के "अतिथि देवो भव' की मूल भावना न्यूनाधिक रुप में यहाँ प्रत्यक्ष प्रमाण मिलेगा।

जिस प्रकार मनुष्य के कर्म उसके व्यक्तित्व को परखने की कसौटी है उसी प्रकार उसकी भाषा-वाणी भी उतना ही सशक्त माध्यम है। किसी देश, प्रदेश की शिष्ट, मीठी बोल-चाल की भाषा, वार्तालाप आदि वहाँ की उन्नत संस्कृति के आधार हैं।

मारवाड़ी लोगों की मीठी वाणी जग प्रसिद्ध है। यहाँ मध्यकालीन सामंती युग में राजा-महाराजाओं, रावों, जागीरदारों, दीवान व मुस्तदियों, सेठ-साहूकारों, दरबारी कवियों, पंडितों, चारण , भाटों और भांगणयारों ने दैनिक जीवन में शिष्टाचार, औपचारिकता, अदब और तमीज निर्वाह के लिए जिस मीठी शिष्ट बोली का सृजन किया, वह बेजोड़ है। मीठेपन के साथ-साथ मारवाड़ियों की भाषा बहुत ही मर्यादित है। विश्व की किसी भी भाषा में ऐसी उच्च कोटि की श्रेष्ठताएँ नहीं है।

मारवाड़ियों की बोल-चाल भाषा में "दादोसा, बाबोसा, दादीसा, भाभूसा, काकोसा, काकीसा, कँवर सा, नानूसा, मामूसा, नानीसा, मामीसा, लाडेसर, लाड़ली, बापजी, अन्नदाता, आप पधारो सा, बिराजोसा, जल अरोगावो सा, आराम फरमावो सा, राज पधारयन सोभा होसी सा' आदि ऐसी कई कर्ण प्रिय शब्दावलियां हैं जो हर आदमी हर दिन विपुलता के साथ प्रयोग करता है।

गाँव में सभी बड़े-बूढ़ों को सम्मान स्वरुप बाबा व काका शब्दों से संशोधित किया जाता है। गांव में जन्मी स्रियों को बहन-बेटी तुल्य समझकर उनके पतियों को बिना किसी विभेद के सभी लोग जंवाई या पावणां (मेहमान) कहकर पुकारते हैं।

अंत में यह कहना समीचीन होगा कि मारवाडवासियों का चित्ताकर्षक रुप-रंग, सीधा, सरल, आस्तिक भाव, परिश्रमी पर आत्म-संतोषी जीवन और उसके साथ मीठी कर्णप्रिय मर्यादित भाषा व बोली ने मिलकर उनके व्यक्तित्व को बहुत परिष्कृत कर संवारा है।

सामान्य ज्ञान .....मारवाड़ के लोकवाद्य यन्त्र

सामान्य ज्ञान .....मारवाड़ के लोकवाद्य यन्त्र 

मानव जीवन संगीत से हमेशा से जुड़ा रहा है। संगीत मानव के विकास के साथ पग-पग पर उपस्थित रहा है। विषण्ण ह्मदय को आह्मलादित एवं निराश मन को प्रतिपल प्रफुल्लित रखने वाले संगीत का अविभाज्य अंग है- विविध-वाद्य यंत्र। इन वाद्यों ने संगीत की प्रभावोत्पादकता को परिवर्धित किया और उसकी संगीतिकता में चार चाँद लगाए हैं। भांति-भाँति के वाद्ययंत्रों के सहयोगी स्वर से संगीत की आर्कषण शक्ति भी विवर्किद्धत हो जाती है।

भारतीय संगीत में मारवाड़ में मारवाड़ के विविध पारंपरिक लोक-वाद्य अपना अनूठा स्थान रखते हैं। मधुरता, सरसता एवं विविधता के कारण आज इन वाद्यों ने राष्ट्रीय ही नहीं, अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान कायम की है। कोई भी संगीत का राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय समारोह या महोत्सव ऐसा नहीं हुआ, जिसमें मरु प्रदेश के इन लोकवाद्यों को प्रतिनिधत्व न मिला है।

मारवाडी लोक-वाद्यों को संगीत की दृष्टि से पॉच भागों में विभाजित किया जा सकता है- यथातत, बितत, सुषिर, अनुब व धन। ताथ वाद्यों में दो प्रकार के वाद्य आते हैं- अनुब व धन।

अनुब में चमडे से मढे वे वाद्य आते हैं, जो डंडे के आधात से बजते हैं। इनमें नगाडा, घूंसा, ढोल, बंब, चंग आदि मुख्य हैं।

लोहा, पीतल व कांसे के बने वाधों को धन वाध कहा जाता है, जिनमें झांझ, मजीरा, करताल, मोरचंगण श्रीमंडल आदि प्रमुख हैं।

तार के वाधों में भी दो भेद हैं- तत और वितत। तत वाद्यों में तार वाले वे साज आते हैं, जो अंगुलियों या मिजराब से बजाते हैं। इनमें जंतर, रवाज, सुरमंडल, चौतारा व इकतारा है। वितत में गज से बजने वाले वाद्य सारंगी, सुकिंरदा, रावणहत्था, चिकारा आदि प्रमुख हैं। सुषिर वाद्यों में फूंक से बजने वाले वाद्य, यथा-सतारा, मुरली, अलगोजा, बांकिया, नागफणी आदि।

उपरोक्त वाद्यों का संक्षिप्त परिचयात्मक विवरण इस प्रकार है-

ताल वाद्य - राजस्थान के ताल वाद्यों में अनुब वाद्यों की बनावट तीन प्रकार की है यथा -

१. वे वाद्य जिसके एक तरु खाल मढी जाती है तथा दूसरी ओर का भाग खुला रहता है। इन वाद्यों में खंजरी, चंग, डफ आदि प्रमुख हैं।

२. वे वाद्य जिनका घेरा लकडी या लोहे की चादर का बना होता है एवं इनके दाऍ-बाऍ भाग खाल से मढे जाते हैं। जैसे मादल, ढोल, डेरु डमरु आदि।

३. वे वाद्य जिनका ऊपरी भाग खाल से मढा जाता है तथा कटोरीनुमा नीचे का भाग बंद रहता है। इनमें नगाडा, धूंसौं, दमामा, माटा आदि वाद्य आते हैं। इन वाद्यों की बनावट वादन पद्वदि इस प्रकार है -


(१) कमट, टामक बंब - इसका आकार लोहे की बङ्ी कङाही जैसा होता है, जो लोहे की पटियों को जोङ्कर बनाया जाता है। इसका ऊपरी भाग भैंस के चमङ्े से मढा जाता है। खाल को चमङ्े की तांतों से खींचकर पेंदे में लगी गोल गिङ्गिङ्ी लोहे का गोल घेरा से कसा जाता है। अनुब व घन वाद्यों में यह सबसे बडा व भारी होता है। प्राचीन काल में यह रणक्षेत्र एवं दुर्ग की प्राचीर पर बजाया जाता था। इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले लिए लकड़ी के छोटे गाडूलिए का उपयोग किया जाता है। इसे बजाने के लिए वादक लकङ्ी के दो डंडे का प्रयोग करते हैं। वर्तमान में इसका प्रचलन लगभग समाप्त हो गया है। इसके वादन के साथ नृत्य व गायन दोनों होते हैं।

(२) कुंडी - यह आदिवासी जनजाति का प्रिय वाद्य है, जो पाली, सिरोही एवं मेवा के आदिवासी क्षेत्रों में बजाया जाता है। मिट्टी के छोटे पात्र के उपरी भाग पर बकरे की खाल मढी रहती है। इसका ऊपरी भाग चार-छः इंच तक होता है। कुंडी के उपरी भाग पर एक रस्सी या चमङ्े की पटटी लगी रहती है, जिसे वादक गले में डालकर खड़ा होकर बजाता है। वादन के लिए लकङ्ी के दो छोटे गुटकों का प्रयोग किया जाता है। आदिवासी नृत्यों के साथ इसका वादन होता है।

(३) खंजरी - लकङ्ी का छोटा-सा घेरा जिसके एक ओर खाल मढ़ी रहती है। एक हाथ में घेरा तथा दूसरे हाथ से वादन किया जाता है। केवल अंगुलियों और हथेली का भाग काम में लिया जाता है। घेरे पर मढी खाल गोह या बकरी की होती है। कालबेलिया जोगी, गायन व नृत्य में इसका प्रयोग करते हैं। वाद्य के घेरे बडे-छोटे भी होते है। घेरे पर झांझों को भी लगाया जाता है।

(४) चंग - एक लकङ्ी का गोल घेरा, जो भे या बकरी की खाल से मढ़ा जाता है। एक हाथ में घेरे को थामा जाता है, दूसरे खुले हाथ से बजाया जाता है। थामने वाले हाथ का प्रयोग भी वादन में होता है। एक हाथ से घेरे के किनारे पर तथा दूसरे से मध्यभाग में आघात किया जाता है। इस वाद्य को समान्यतः होलिकोत्सव पर बजाया जाता है।

(५) डमरु - यह मुख्य रुप से मदारियों व जादूगरों द्वारा बजाया जाता है। डमरु के मध्य भाग में डोरी बंघी रहती है, जिसके दोनो किनारों पर पत्थर के छोटे टुकङ्े बंधे रहते हैं। कलाई के संचालन से ये टुकङ्े डमरु के दोनो ओर मढ़ी खाल पर आघात करते हैं।

(६) ड - लोहे के गोल घेरे पर बकरे की खाल चढी रहती है। यह खाल घेरे पर मढ़ी नहीं जाती, बल्कि चमड़े की बद्धियों से नीचे की तरफ कसी रहती है। इसका वादन चंग की तरफ होता है। अंतर केवल इतना होता है कि चमडे की बद्धियों को ढ़ील व तनाव देकर ऊँचा-नीचा किया जा सकता है।

(७) डेरु - यह बङा उमरु जैसा वाद्य है। इसके दोनों ओर चमङा मढ़ा रहता है, जो खोल से काफी ऊपर मेंडल से जुङा रहता है। यह एक पतली और मुङ्ी हुई लकड़ी से बजाया जाता है। इस पर एक ही हाथ से आघात किया जाता है तथा दूसरे हाथ से डोरी को दबाकर खाल को कसा या ढीला किया जाता है। इस वाद्य का चुरु, बीकानेर तथा नागौर में अधिक प्रचलन है। मुख्य रुप से माताजी, भैरु जी व गेगा जी की स्तुति पर यह गायी जाती है।

(८) ढाक - यह भी डमरु और डेरु से मिलता-जुलता वाद्य है, लेकिन गोलाई व लंबाई डेरु से अधिक होती है। मुख्य रुप से यह वाद्य गु जाति द्वारा गोढां (बगङावतों की लोककथा) गाते समय बजाया जाता है। झालावाङा, कोटा व बूँदी में इस वाद्य का अधिक प्रचलन है। वादक बैठकर दोनो पैरों के पंजो पर रखकर एक भाग पतली डंडी द्वारा तथा दूसरा भाग हाथ की थाप से बजाते है।

(९) ढ़ोल - इसका धेरा लोहे की सीघी व पतली परतों को आपस में जोङ्कर बनाया जाता है। परतों (पट्टियों) को आपस में जोङ्ने के लिये लोहे व तांबे की कीलें एक के बाद एक लगाई जाती है। धेरे के दोनो मुँह बकरे की खाल से ढ़के जाते हैं। मढ़े हुए चमङ्े को कसरन के लिए डोरी का प्रयोग किया जाता है। ढोल को चढ़ाने और उतारने के लिए डोरी में लोहे या पीतल के छल्ले लगे रहते हैं। ढोल का नर भाग डंडे से तथा मादा भाग हाथ से बजाया जाता है। यह वाद्य संपूर्ण राजस्थान में त्योहार व मांगलिक अवसरों पर बजाया जाता है। राजस्थान में ढोली, मिरासी, सरगरा आदि जातियों के लोग ढोल बजाने का कार्य करते हैं। ढोल विभित्र अवसरों पर अलग-अलग ढंग से बजाया जाता है, यथा- कटक या बाहरु ढोल, घोङ्चिङ्ी रौ ढोल, खुङ्का रौ ढोल आदि।

(१०) ढोलक - यह आम, बीजा, शीशम, सागौन और नीम की लकङ्ी से बनता है। लकङ्ी को पोला करके दोनों मुखों पर बकरे की खाल डोरियों से कसी रहती है। डोरी में छल्ले रहते हैं, जो ढोलक का स्वर मिलाने में काम आते हैं। यह गायन व नृत्य के साथ बजायी जाती है। यह एक प्रमुख लय वाद्य है।

(११) तासा - तासा लोहे या मिट्टी की परात के आकार का होता है। इस पर बकरे की खाल मढ़ी जाती है, जो चमङ्ें की पटिटयों से कसी रहती है। गले में लटका कर दो पहली लकङ्ी की चपटियों से इसे बजाया जाता है।

(१२) धूंसौ - इसका घेरा आम व फरास की लकढ.#ी से बनता है। प्राचीन समय में रणक्षेत्र के वाद्य समूह में इसका वादन किया जाता था। कहीं-कहीं बडे-बडे मंदिरों में भी इकसा वादन होता है। इसका ऊपरी भाग भैंस की खाल से मढ. दिया जाता है। इसकों लकङ्ी के दो बडे-डंडे से बजाया जाता है।

(१३) नगाङा- समान प्रकार के दो लोहे के बङ्े कटोरे, जिनका ऊपरी भाग भैंस की खाल से मढा जाता है। प्राचीन काल में घोङ्े, हाथी या ऊँट पर रख कर राजा की सवारी के आगे बजाया जाता था। यह मुख्य-मुख्य से मंदिरों में बजने वाला वाद्य है। इन पर लकङ्ी के दो डंडों से आघात करके ध्वनि उत्पत्र करते हैं।

(१४) नटों की ढोलक - बेलनाकृत काष्ठ की खोल पर मढा हुआ वाद्य। नट व मादा की पुडियों को दो मोटे डंडे से आधातित किया जाता है। कभी-कभी मादा के लिए हाथ तथा नर के लिए डंडे का प्रयोग किया जात है, जो वक्रता लिए होता है। इसके साथ मुख्यतः बांकिया का वादन भी होता है।

(१५) पाबूजी के मोटे - मिट्टी के दो बङ्े मटकों के मुंह पर चमङा चढाया जाता है। चमङ्े को मटके के मुँह की किनारी से चिपकाकर ऊपर डोरी बांध दी जाती है। दोनों माटों को अलग-अलग व्यक्ति बजाते हैं। दोनों माटों में एक नर व एक मादा होता है, तदनुसार दोनों के स्वर भी अलग होते हैं। माटों पर पाबूजी व माता जी के पावङ्े गाए जाते है। इनका वादन हथेली व अंगुलियों से किया जाता है। मुख्य रुप से यह वाद्य जयपुर, बीकानेर व नागौर क्षेत्र में बजाया जाता है।

(१६) भीलों की मादल - मिट्टी का बेलनाकार घेरा, जो कुम्हारों द्वारा बनाया जाता है। घेरे के दोनो मुखों पर हिरण या बकरें की खाल चढाई जाती है। खाल को घेरे से चिपकाकर डोरी से कस दी जाती है, इसमें छल्ले नही लगते। इसका एक भाग हाथ से व दूसरा भाग डंडे से बजाया जाता है। यह वाद्य भील व गरासिया आदिवासी जातियों द्वारा गायन, नृत्य व गवरी लोकनाट्य के साथ बजाया जाता है।

(१७) रावलों की मादल - काष्ठ खोलकर मढा हुआ वाद्य। राजस्थानी लोकवाद्यों में यही एक ऐसा वाद्य है, जिसपर पखावज की भांति गट्टों का प्रयोग होता है। दोनों ओर की चमङ्े की पुङ्यों पर आटा लगाकर, स्वर मिलाया जाता है। नर व मादा भाग हाथ से बजाए जाते हैं। यह वाद्य केवल चारणों के रावल (चाचक) के पास उपलब्ध है।



धन वाद्य - यह वाद्य प्रायः ताल के लिए प्रयोग किए जाते हैं। प्रमुख वाद्यों की बनावट व आकार-प्रकार इस प्रकार है -


(१) करताल - आयताकार लकङ्ी के बीच में झांझों का फंसाया जाता है। हाथ के अंगूठे में एक तथा अन्य अंगुलियों के साथ पकड़ लिया जाता है और इन्हें परस्पर आधारित करके लय रुपों में बजाया जाता है। मुख्य रुप से भक्ति एवं धार्मिक संगीत में बजाया जाता है। मुख्य रुप से भक्ति एवं धार्मिक संगीत में इसका प्रयोग होता है।

(२) खङ्ताल - शीशम, रोहिङा या खैर की लकङ्ी के चार अंगुल चौङ्े दस अंगुल लंबे चिकने व पतले चार टुकङ्े। यह दोनो हाथों से बजायी जाती है तथा एक हाथ में दो अफकङ्े रहते हैं। इसके वादन में कट-कट की ध्वनी निकलती है। लयात्मक धन वाद्य जो मुख्य रुप से जोधपुर, बाडमेंर व जैसलमेंर क्षेत्रों में मांगणयार लंगा जाति के लोग बजाते हैं।

(३) धुरालियो - बांस की आठ-दस अंगुल लंबी व पतली खपच्ची का बना वाद्य। बजाते समय बॉस की खपच्ची को सावधानी पूर्वक छीलकर बीच के पतले भाग से जीभी निकाली जाती है। जीभी के पिछले भाग पर धागा बंधा रहता है। जीभी को दांतों के बीच रखकर मुखरंध्र से वायु देते हुए दूसरे हाथ से धागे को तनाव व ढील (धीरे-धीरे झटके) द्वारा ध्वनि उत्पत्र की जाती है। यहा वाद्य कालबेलिया तथा गरेसिया जाति द्वारा बजाया जाने वाला वाद्य यंत्र है।

(४) झालर - यह मोटी घंटा धातु की गोल थाली सी होती है। इसे डंडे से आघादित किया जाता है। यह आरती के समय मंदिरों में बजाई जाती है।

(५) झांझ - कांसे, तांबे व जस्ते के मिश्रण से बने दो चक्राकार चपटे टुकङों के मध्य भाग में छेद होता है। मध्य भाग के गड्डे के छेद में छोरी लगी रहती है। डोरी में लगे कपङ्े के गुटको को हाथ में पकङ्कर परस्पर आधातित करके वादन किया जाता है। यह गायन व नृत्य के साथ बजायी जाती है।

(६) मंजीरा - दो छोटी गहरी गोल मिश्रित धतु की बनी पट्टियॉ। इनका मध्य भाग प्याली के आकार का होता है। मध्य भाग के गड्ढे के छेद में डोरी लगी रहती है। ये दोनों हाथ से बजाए जाते हैं, दोनों हाथ में एक-एक मंजीरा रहता है। परस्पर आघात करने पर ध्वनि निकलती है। मुख्य रुप से भक्ति एवं धर्मिक संगीत में इसका प्रयोग होता है। काम जाति की महिलाएँ मंजीरों की ताल व लय के साथ तेरह ताल जोडती है।

(७) श्री मंडल - कांसे के आठ या दस गोलाकार चपटे टुकङों। रस्सी द्वारा यह टुकङ्े अलग-अलग समानान्तर लकडी के स्टैण्ड पर बंधे होते हैं। श्रीमंडल के सभी टुकडे के स्वर अलग-अलग होते हैं। पतली लकङ्ी को दो डंडी से आघात करके वादन किया जाता है। राजस्थानी लोक वाद्यों में इसे जलतरंग कहा जा सकता है।

(८) मोरचंग - लोहे के फ्रेम में पक्के लाहे की जीभी होती है। दांतों के बीच दबाकर, मुखरंध्र से वायु देते हुए जीभी को अंगुली से आघादित करते हैं। वादन से लयात्मक स्वर निकलते हैं। यह वाद्य चरवाहों, घुमक्कङों एवं आदिवासियों में विशेष रुप से प्रचलित वाद्य है।

(९) भपंग - तूंबे के पैंदे पर पतली खाल मढी रहती है। खाल के मध्य में छेद करके तांत का तार निकाला जाता है। तांत के ऊपरी सिरे पर लकङ्ी का गुटका लगता है। तांबे को बायीं बगल में दबाकर, तार को बाएँ हाथ से तनाव देते हुए दाहिने हाथ की नखवी से प्रहार करने पर लयात्मक ध्वनि निकलती है।

(१०) भैरु जी के घुंघरु - बङ्े गोलाकार घुंघरु, जो चमङ्े की पट्टी पर बंधे रहते हैं। यह पट्टी कमर पर बाँधी जाती है। राजस्थान में इसका प्रयोग भैरु जी के भोपों द्वारा होता है, जो कमर को हिलाकर इन घुंघरुओं से अनुरंजित ध्वनि निकालते हैं तथा साथ में गाते हैं।



सुषिर वाद्य - राजस्थान में सुषिर वाद्य काष्ठ व पीतल के बने होते हैं। जिसमें प्रमुख वाद्यों का परिचयात्मक विवरण इस प्रकार है -



(१) अलगोजा - बांस के दस-बारह अंगुल लंबे टुकङ्े, जिनके निचले सिरे पर चार छेद होते हैं। दोनों बांसुरियों को मुंह में लेकर दोनों हाथों से बजाई जाती है, एक हाथ में एक-एक बांसुरी रहती है। दोनों बांसुरियों के तीन छेदों पर अंगुलियाँ रहती हैं। यह वाद्य चारवाहों द्वारा कोटा, बूंदी, भरतपुर व अलवर क्षेत्रों में बजाया जाता है।

(२) करणा - पीतल का बना दस-बारह फुट लंबा वाद्य, जो प्राचीन काल में विजय घोष में प्रयुक्त होता था। कुछ मंदिरों में भी इसका वादन होता है। पिछले भाग से होंठ लगाकर फूँक देने पर घ्वनि निकलती है। जोधपरु के मेहरानगढ़ संग्रहालय में रखा करणा वाद्य सर्वाधिक लंबा है।

(३) तुरही - पीतल का बना आठ-दस फुट लंबा वाद्य, जिसका मुख छोटा व आकृति नोंकदार होती है। होंठ लगाकर फुँकने पर तीखी ध्वनि निकलती है। प्राचीन काल में दुर्ग एवं युद्व स्थलों में इसका वादन होता था।

(४) नड़ - कगोर की लगभग एक मीटर लंबी पोली लकङ्ी, जिसके निचले सिरे पर चार छेद होते हैं। इसका वादन काफी कठिन है। वादक लंबी सांस खींखकर फेफङों में भरता है, बाद में न में फूँककर इसका वादन होता है। फूँक ठीक उसी प्राकर दी जाती है, जिस प्रकार कांच की शीशी बजायी जाती है। वादन के साथ गायन भी किया जाता है। वा वाद्य जैसलमेर में मुख्य रुप से बजाया जाता है।

(५) नागफणी - सर्पाकार पीतल का सुषिर वाद्य। वाद्य के मुंह पर होठों द्वारा ताकत से फूँक देने पर इसका वादन होता है। साधुओं का यह एक धार्मिक वाद्य है तथा इसमें से घोरात्मक ध्वनि निकलती है।

(६) पूंगी/बीण - तांबे के निचले भाग में बाँस या लकङ्ी की दो जङ्ी हुई नलियाँ लगी रहती हैं। दोनो नलियों में सरकंडे के पत्ते की रीठ लगाई जाती है। तांबे के ऊपरी सिरे को होठों के बीच रखकर फूँक द्वारा अनुध्वनित किया जाता है।

(७) बांकिया - पीतल का बना तुरही जैसा ही वाद्य, लेकिन इसका अग्र भाग गोल फाबेदार है। होठों के बीच रखरकर फूंक देने पर तुड-तुड ध्वनि निकलती है। यह वाद्य मांगलिक पर्वो पर बजाया जाता है। इसमें स्वरों की संख्या सीमित होती है।

(८) मयंक - एक बकरे की संपूर्ण खाल से बना वाद्य, जिसके दो तरु छेद रहते हैं। एक छेद पर नली लगी रहती है, वादक उसे मुंह में लेकर आवश्यकतानुसार हवा भरता है। दूसरे भाग पर दस-बारह अंगुल लंबी लकङ्ी की चपटी नली होती है। नली के ऊपरी भाग पर छः तथा नीचे एक छेद होता है। बगल में लेकर धीरे-धीर दबाने से इसका वादन होता है। जोगी जाति के लोग इस पर भजन व कथा गाते हैं।

(९) मुरला/मुरली - दो नालियों को एक लंबित तंबू में लगाकर लगातार स्वांस वादित इस वाद्य यंत्र के तीन भेद हैं: - आगौर, मानसुरी और टांकी। छोटी व पतली तूंबी पर निर्मित टांकी मुरला या मुरली कहलाती है। श्रीकरीम व अल्लादीन लंगा, इस वाद्य के ख्याति प्राप्त कलाकार हैं। बाड़में क्षेत्र में इस वाद्य का अधिक प्रचलन है। इस पर देशी राग-रागनियों की विभिन्न धुने बजायी जाती है।

(१०) सतारा - दो बांसुरियों को एक साथ निरंतर स्वांस प्रक्रिया द्वारा बजाया जाता है। एक बांसुरी केवल श्रुति के लिए तथा दूसरी को स्वरात्मक रचना के लिए काम में लिया जाता है। फिर घी ऊब सूख लकङ्ी में छेद करके इसे तैयार किया जाता है। दोनों बांसुरियों एक सी लंबाई होने पर पाबा जोड़ी, एक लंबी और एक छोटी होने पर डोढ़ा जोङा एवं अलगोजा नाम से भी जाना जाता है। यह पूर्ण संगीत वाद्य है तथा मुख्य रुप से चरवाहों द्वारा इसका वादन होता है। यह वाद्य मुख्यतया जोधपुर तथा बाड़मेर में बजाया जाता है।

(११) सिंगा - सींग के आकार का पीपत की चछर का बना वाद्य। पिछले भाग में होंठ लगाकर फूँक देने पर बजता है। वस्तुतः यह सींग की अनुक्रम पर बना वाद्य है, जिसका वादन जोगी व साधुओं द्वारा किया जाता है।

(१२) सुरगाई-सुरनाई - दीरी का यह वाद्य ऊपर से पहला व आगे से फाबेदार होता है। इसके अनेक रुप राजस्थान मे मिलते हैं। आदिवासी क्षेत्रों में लक्का व अन्य क्षेत्रों में नफीरी व टोटो भी होते हैं। इसपर खजूर या सरकंडे की पत्ती की रीढ लगाई जाती है। जिसे होंठों के बीच रखकर फूँक द्वारा अनुध्वनित किया जाता है। मांगलिक अवसर पर वादित यह वाद्य भी निरंतर स्वांस की प्रक्रिया द्वारा बजाया जाता है। इसकी संगत नगारे के साथ की जाती है।



तार वाद्य (तत)



(१) इकतारा - यह वाद्य प्रायः साधु-संतों के हाथों में देखा जा सकता है। इसका प्रयोग इनके द्वारा भजन के समय किया जाता है। चपटे एवं गोलाकार तूंबे के मध्य भाग मे छेद करके उसमें लगभग तीन फुट लंबा बाँस का डंडा लगा रहता है। बांस के डंडे के ऊपरी सिरे से दो इंच छोडकर नीचे की ओर एक खूँटी लगी रहती है। तूंबे का ऊपरी भाग पतली खाल से मढा होता है। खाल के मध्य भाग में लगी घोड़ी के ऊपर से एक तार निकलता है, जो डंडे के ऊपरी सिरे पर लगी खूंटी में कसा जाता है। अंगुलियों द्वारा आघात करने पर इसका वादन होता है।

(२) चौतारा, तंदूरा, बीणा - संपूर्ण राजस्थान में निर्गुणी भक्ति संगीत का श्रुति वलय वाद्य। इसमें पाँच तार होते हैं। बङ्ें आकार की तबली (कुंडी), जिसे पतली लकङ्ी से ही आवृत किया जाता है। नाली लंबी होती है। इसे मिजराफ पहन कर बांये से दांए झंकृत कर के बजाया जाता है। झंकृत करने की क्रिया से लय व स्वर दोनों मिलते हैं। मंडली व संगत में बजने वाला वाद्य है, जो स्वर स्थान के निर्धारण का काम भी करता है।

(३) जंतर - नखवी से आघारित तत् वाद्य। बीणा के आकार के अनुसार दो तूंबो पर एक डांड होती है। डांड के अंतिम भाग को लकङ्ी के अंकुडे के रुप में घोङ्ी का आकार दिया जाता है। डांड के नीचे से मुट्ठी रुप में पकडकर तारों को नीचे से आघादित किया है। इसमें चौदह पर्दे होते हैं, जिन्हें मोम द्वारा लगाया जाता है। इसका ऊपर का ब्रिज मेरु कहलाता है, जो खङा रहता है। चार तारों में से तीन तार पर्दे के ऊपर से निकलते हैं, चौथा तार पपैये का काम करता है, जो अंगूठे से आघात ग्रहण करता है। इस वाद्य का प्रयोग बगङावत गाथा वाले गायक करते हैं।

(४) रवाज - यह वाद्य केवल चारणों के रावलों (याचक) के पास उपलब्ध है, किन्तु अब इसे बजाने वाले एक भी रावल नही हैं। रावल जाति के लोग रम्मत (लोकनाट्य) करते समय गायन के साथ इसका प्रयोग करते थे। खाज का ऊपरी आकार-प्रकार कमायचें से काफी मिलता-जुलता है। इस की गोलाकार तबली का ऊपरी भाग खाल से मढा है। इसमें चार तांत के रोदे लगे होते हैं। इन्हें अंगुलियों की नखों से आधारित करके बजाया जाता है।

(५) सुरमण्डल - इसमें तारों की छेङ् अंगुलियों द्वारा की जाती है। गायक अपनी संगत के लिए इसे काम में लाता है तथा स्वतंत्र वादन भी करता है। यह मांगणयार गायकों में ही प्रचलित लोकवाद्य है।



वितत् वाद्य



(१) कमायचा - गज से बजने वाला वितत् वाद्य। आम, शीशम की लकङ्ी से गोलाकार तबली का ऊपरी भाग खाल से मढा होता है। जिसमें बकरे की खाल काम में ली जाती है। बाज के तीन मुख्य तार तांत के दो रोदा लगते हैं। तरबों के संख्या ११ से १५ तक होती है। इसका सांगीतिक महत्व यह है कि तरबों पर भी गज का कार्य संभव है। यह वाद्य बाडमेंर तथा जैसलमेंर में काफी प्रचलित है।

(२) गुजरातण सारंगी - यह छोटी सारंगी का रुप है। बाज के चार तार (दो लोहे व दो तांत) होते हैं। इसमें पाँच झारे व सात या नौ जीले (तरबे) होती हैं। गज छोटा होता है, तथा उसका संचालन लय प्रधान है। यह वाद्य लंगा जाति के गायकों में प्रचलित है, जो गायन के साथ बजाया जाता है।

(३) जोगिया सारंगी - जोगी गायकों का प्रमुख वाद्य। गज द्वारा वादित वितत् वाद्य। इसके मुख्य बाज के तार तांत के होते हैं। तबली हल्की तुन की लकङ्ी की बनी होती है। गज छोटा होता है। नागौर से लेकर राजस्थान के पूर्वी भाग तक प्रचलित है। जोगी जाति के गायक इस पर धार्मिक संगीत एवे लोकगाथाएँ गाते हैं।

(४) डेढ पसली की सारंगी - गुजरातण सारंगी के समान छोटी सारंगी, जिसकी तबली का एक भाग सपाट व अन्य भाग में वक्र अर्थ गोलाकार। इसके मोरणे खङ्े होते हैं, जो डांड के पार्श्व में हैं। मुख्य चार तार-दो तांत व दो स्टील के तारों का स्वर लते हैं। जीले (तखे) आठ होती हैं। कभी-कभी सतरह भी। यह वाद्य भीनमाल, सिवाणा क्षेत्र में हिन्दू टोलियों के पास उपलब्ध है।

(५) धानी सारंगी - जोगिया सारंगी का ही रुप। वस्तुतः तीन तांतों का गज वाद्य है। गज अपेक्षाकृत छोटा होता है। इसमें जील (तरब) के कुल आठ या छः तार होते हैं। लोकगाथाओं के साथ बजने वाला वाद्य।

(६) सिंधी सारंगी - लोक सारंगियों में सबसे विकसित सारंगी है। इसका ढांचा टाली (शीशम) की लकङ्ी से बनता है तथा तबली खाल से मढी रहती है। मुख्य बाज के चार तार होते हैं- दो लोहे के दो तांत के। आठ झारे और चौदह जीलें होती हैं। लंगा जाति के गायकों में प्रचलित है। बाडमेर व जैसलमेर क्षेत्र में इसका विशेष प्रचार है।

(७) सुर्रिदा - सुकिंरदा गज द्वारा वादित वितत् वाद्य है। राजस्थान में इसका प्रयों सुषिर वाद्यों की संगत में किया जाता है, विशेषकर मुरली के साथ। सुकिंरदा की संगत पर गाने का कार्य बलूचिस्तान व अफगानिस्तान में होता है। मुख्य बाज के तार दो लोहे व एक तांत का होता है। ऊँचे स्वर पर ही मिलाया जाता है। गज पर घुंघरु लगे होते हैं। गज का संचालन लयात्मक मुहावर पर होता है। यह वाद्य मुख्यतया सुरणइया लंगों के हाथ में है। इसका ढाचा शीशम की लकङ्ी का होता है व तबली खाल से मढी होती है।

(८) रावणहत्था - यह पाबूजी की कथावाचक नायक जाति द्वारा बजाया जाता है। नारियल के खोल से तबली तथा बांस की लकङ्ी से डांड बनती है। छोटी-सी तबली खाल से मढी जाती है। रावणहत्थे के दो मोरणों पर घोडें की पूंछ के बाल व दस मोरणियों के लोहे व पीतल के तार (तरबें) लगे होते हैं। घुंघरुदार गज से बजाया जात है। मुख्य रुप से पाबूजी की लोकगाथा गाने वाले नायक/भीलों का वाद्य है।

इन वाद्यों के अतिरिक्त गरासिया व मेदों का चिकारा, मटकी, रबाब, दुकाकी, अपंग सिंगी, भूंगल्ल, बर्गू, पेली कानी आदि अनेक लोकवाद्य राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में देखने को मिलते हैं। जिनका मारवाङ्ी संगीत में विशिष्ट स्थान है।

औरतों को सेक्शुअल पोजिशन में पका कर खाने का शौकीन था पुलिसवाला

न्यूयॉर्क के एक पुलिस ऑफिसर गिलबेर्टो वैले को पिछले साल अक्टूबर में अपराधी मानते हुए गिरफ्तार किया गया था। उनपर महिला का किडनैप, रेप करने और फिर पका कर खाने का आरोप है।
PICS: औरतों को सेक्शुअल पोजिशन में पका कर खाने का शौकीन था पुलिसवाला
वकील जूरी सदस्यों को कुछ ऐसी तस्वीरें दिखाना चाहते हैं, जिनमें महिलाओं को पकाते हुए और खाने वाली चीज की तरह दिखाया गया है। ये तस्वीरें अपराधी ‘नरभक्षी पुलिस’ गिलबेर्टो वैले के केस में उचित फैसला मिलने के लिए पेश की जा रही हैं।

एटोर्नी जूलिया एल गैटो ने कहा कि वह कुछ फोटो दिखाना चाहती हैं, जिनमें औरतों को सेक्शुअल पोजिशन में पकाते हुए और खाने वाली चीज की तरह दिखाया गया है।

गिलबेर्टो वैले जब बच्चा था, तभी से उसमें महिलाओं को बांधकर रेप करने और और फिर पका कर खाने का पागलपन शुरू हो गया था। उसने स्वीकार किया कि कैमरॉन डियाज की 1994 में आई एक फिल्म ‘द मास्क’ में उसने ऐसे दृश्य देखे थे, जिसके बाद उसके अंदर ऐसी प्रवृत्ति पैदा हो गई।

सिनेमा ने सौ साल से याद रखा है गांधी को


सिनेमा ने सौ साल से याद रखा है गांधी को

जयपुर, ३१ जनवरी. जिफ के दूसरे दिन आज कई महत्वपूर्ण और मनोरंजक फिल्मों का प्रदर्शन हुआ. समारोह के प्रति जयपुर के लोगों में खासा उत्साह नज़र आया. आज शहर के आठ स्थलों पर फिल्मों का प्रदर्शन किया गया जिनमें गोलछा सिनेमा, गोलछा ट्रेड सेंटर, चेंबर भवन, महारानी कॉलेज, एम जी डी स्कूल, पर्ल अकेडमी, स्पेस व फन सिनेमा शामिल हैं. चंद्रमहल में हरिश्चंद्र ची फेक्ट्री के साथ ही के आसिफ की  मुगले आज़म और गुरुदत्त कि कागज के फूल भी दिखाई गई. हिन्दी सिनेमा में मील का पत्थर बन चुकी 'मुगले आजम' 48 वर्ष पहले प्रदर्शित हुई थी, लेकिन पांच दशक गुजर जाने के बावजूद सलीम-  के सिर चढ़कर बोल दर्शको अनारकली का जादू आज भी।
रहा है.फिल्म 5 अगस्त 1960 को परदे पर आई थी और इसे तैयार करने में कुल एक करोड़ पांच लाख रुपये खर्च हुए थे। आपको जानकर ताज्जुब होगा के फिल्म के निर्देशक के. आसिफ ने शूटिंग के लिए तैयार किए गए शीशमहल पर ही 10 लाख रुपए खर्च कर डाले थे। फिल्म के लोकप्रिय गीत 'जब  प्यार किया तो डरना क्या ' का फिल्मांकन इसी महल में किया गया था और उन दिनों फिल्म में पूंजी लगाने वाले शापूरजी पालोनजी दिवालिया होने की स्थिति में आ गए थे।'मुगले आजम' में सलीम की भूमिका निभाने वाले दिलीप कुमार के मुताबिक फिल्म को तैयार होने में पूरे सात वर्ष लगे और इसका प्रीमियर मुंबई के मराठा मंदिर सिनेमा घर में हुआ था। उस जमाने में फिल्म को देश भर के 150 सिनेमा घरों में एक साथ प्रदर्शित किया गया था, जो अपने-आप में एक रिकार्ड था।आसिफ ने पहली बार इस फिल्म के निर्माण की योजना वर्ष 1944 में बनाई थी और चंद्रमोहन को अकबर, सप्रू को सलीम और नरगिस को अनारकली की भूमिका के लिए चुना था, लेकिन योजना बीच में ही रोक दी गई। दूसरी बार वर्ष 1953 में इस फिल्म पर काम शुरू किया गया, जिसमें पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार और मधुबाला क्रमश: अकबर, सलीम और अनारकली की भूमिका के लिए पसंद किए गए.
उल्लेखनीय है कि आसिफ ने इस फिल्म को हिन्दी, तमिल और अंग्रेजी भाषा में बनाने की योजना तैयार की थी, लेकिन तमिल भाषा में प्रदर्शित फिल्म के बॉक्स ऑफिस पर असफल होने के बाद अंग्रेजी भाषा में प्रदर्शित करने का विचार छोड़ दिया गया।
भारतीय सिनेमा की पहली सिनेमास्कोप फिल्म "कागज के फूल" थी। 1959 में गुरू दत्त के निर्देशन में बनी इस ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म के लीड एक्टर भी खुद गुरू दत्त थे, जबकि उनके अपोजिट वहीदा रहमान थीं। माना जाता है कि यह फिल्म गुरूदत्त की असल जिंदगी से प्रेरित थी। हालांकि यह बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई, लेकिन इसका नाम सिनेमा के क्लासिक फिल्मों की लिस्ट में शामिल है।  नाइल में लखविंदर सिंह की भवरी, अनुराग शर्मा की स्पीकिंग स्टोन, शाजिया श्रीवास्तव की दो पहर, इटली के लोरेंजो गोरेनरी की सोनिया ज स्टोरी, पूजा मक्कड़ की पश्चाताप की पूर्णाहुति सहित कुल इकत्तीस फिल्मों का प्रदर्शन हुआ.
आलम आरा और भारतीय सिनेमा
लेखक पत्रकार शिवानन्द कामडे द्वारा चेंबर भवन में भारतीय सिनेमा की पहली बोलती फिल्म आलम आरा पर बहुत महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी गई. सिनेमा पर आठ पुस्तकों सहित कुल सत्ताईस किताबें लिख चुके कामड़े छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं और आलम आरा पर उनकी लिखी पुस्तक चर्चित रही है. कामड़े आज अपनी वार्ता में इस पहली बोलती फिल्म की कथावस्तु, इसके गीत-संगीत और गायकों के नाम आदि की विस्तृत जानकारी दी.इस फिल्म के ऐतिहासिक प्रदर्शन को याद करते हुए कामडे ने बताया कि इम्पीरियल कंपनी की यह फिल्म मुम्बई के गिरगांव स्थित मेजेस्टिक सिनेमा में दोपहर तीन बजे हुआ. मुम्बई के तत्कालीन गवर्नर ने इसका उदघाटन किया.

भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष
चन्द्रमहल में वरिष्ठ लेखक एवं स्तंभकार जयप्रकाश चौकसे, इला अरुण, प्रेम चोपड़ा एवं प्रसून सिन्हा भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष पर बात करने के लिए बैठे. जयप्रकाश चौकसे ने सिनेमा के अविष्कार से लेकर मूक फिल्मों, बोलती फिल्मों , पौराणिक कथाओं , देशभक्ति की फिल्मों से लेकर आज के सिनेमा तक की यात्रा को सविस्तार बताया एवं सिनेमा से जुडी कई रोचक जानकारियाँ भी दी. चौकसे ने कहा कि तीन घंटे की फिल्म हमारा अपना आविष्कार है और बीच में अपनी खाने-पीने की परंपरागत आदत को देखते हुए हमने ही फिल्म के बीच इंटरवल का कंसेप्ट पैदा किया.उनका कहना था कि हर देश का सिनेमा वैसा ही होता है जैसा वहाँ का खाना होता है. उन्होंने बताया कि हिन्दुस्तानी सिनेमा पर महात्मा गांधी का प्रभाव शुरू से रहा है और यह एक बड़ी सच्चाई है कि समाज ने भले ही गांधी को भुला दिया हो पर सिनेमा ने सौ साल तक आज भी गांधी को जिंदा रखा है. हिमांशु राय की अछूत कन्या से लेकर हाल ही दो साल पहले ढाई सौ करोड़ की कमाई करने वाली थ्री इडियट तक गांधी के विचारों का ही स्पष्ट प्रभाव है. चौकसे ने एक अन्य रोचक जानकारी देते हुए कहा कि हिमांशु राय ने अपनी शुरूआती तीन फिल्मों की शूटिंग १९२५-१९२७ के बीच जयपुर में की. देविका रानी भी न्यू थियेटर से जुडी हुई थी जो गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर की बहन की लड़की है. गुरुदेव खुद न्यू थियेटर के बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर में शामिल थे. चरित्र अभिनेता प्रेम चौपडा ने कहा कि अभिनेता का एक ही उद्देश्य होता है धर्म, जाति, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर सिर्फ़ अभिनय करना. उनका मकसद हमेशा दर्शकों की ज्यादा से ज्यादा मौहब्बत पाना और देना ही मकसद रहता है. उन्होंने कहा कि सिनेमा को उद्योग का दर्ज़ा भले ही मिल गया है पर सरकारी सहयोग आज भी नहीं के बराबर है. सरकार सिनेमा पर कई तरह के कर लगाती है. कलाकारों पर सर्विस टेक्स लगाया जाता है. पाइरेसी पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. इधर अभिव्यक्ति की पूरी आज़ादी भी नहीं है. गायिका इला अरुण ने फिल्म संगीत एवं लोक तत्व पर अपने विचार रखे.

डिज़िटल फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन
नए निर्माताओं के लिए प्रोड्यूसर मीट के तहत डिज़िटल फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन पर एक सेमिनार भी चेंबर भवन में हुई. जिसमें प्रसून सिन्हा, बी.बी. नागपाल व समीर मोदी ने फिल्म निर्माण में परेशानियां, सरकारी सहयोग में कठिनाई एवं इंटरनेट पर इ–डिस्ट्रीब्यूशन पर अपने अनुभव एवं नई जानकारियाँ दी.

अपहरण और गवार लूट के आरोपियों सहित तीन गिरफ्तार

अपहरण और गवार लूट के आरोपियों सहित तीन गिरफ्तार 
जैसलमेर हाल ही के दिनों में पुलिस थाना जैसलमेर जैसलमेर के हल्खा क्षैत्र में हुई चोरी एवं अपहरण की घटनोंओ को गम्भीरता से लेते हुए, पुलिस अधीक्षक जिला जैसलमेर ममता राहुल द्वारा वीरेन्द्रसिंह निपु थानाधिकारी पुलिस थाना जैसलमेर को उक्त वारदातो के आरोपियों को जल्द से जल्द गिरफतार करने के निर्देश दिये गये। जिस पर वीरेन्द्रसिंह निपु थानाधिकारी पुलिस थाना जैसलमेर के नेतृत्व में टीमो का गठन कर लूट एवं अपहरण के आरोपियों को गिरफतार किया गया :


ग्वार लूट का आरोपी मानाराम पुलिस की गिरफ्त में 

गत माह  प्रेमा राम पुत्र गोविंदा राम माली नि0 देवा जिला जेसलमेर ने उपस्थित थाना होकर एक लिखित रिपोर्ट पेश की कि दिनांक 25.12.12 को मै मैरा ट्रक नम्बर आरजे 19 जीए 4003 जो मै ग्वार से भर कर जोधपुर के लिये जा रहा था। करीबन रात्रि 10 बजे चांदन रेल्वे क्रोसिंग के पास पहुचा जहां पर एक बोलेरो एसएलएक्स बंद बॉडी गाडी को मेरे ट्रक के आगे देकर रूकवाया तथा मुझे चाकु दिखा कर मेरे पास से 45000/रू0 व ग्वार से भरा ट्रक को लूट कर चले गये। जिस पर पुलिस थाना जैसलमेर में लूट का मामला दर्ज कर अनुसंधान प्रारम्भ किया गया। 

दौराने अनुसंधान वीरेन्द्र सिंह निपु थानाधिकारी पुलिस थाना जैसलमेर, किशोर सिंह उनि थानाधिकारी पुलिस थाना खुहडी एवं जबर सिंह उनि थानाधिकारी पुलिस थाना झिंझनीयाली के नेतृत्व में टीम गठित की गई । उक्त टीमो द्वारा कल दिनांक 30.01.12 को वीरेन्द्रसिंह नि.पु. थानाधिकारी पुलिस थाना जैसलमेर मय टीम सदस्यों द्वारा फरार मुलजिम माना राम पुत्र खेमा राम जाति जाट जांगू निवासी जांगूओ की ाणी, भीमडा थाना बायतु जिला बाडमेर को गिरफ्तार कर पुलिस अभिरक्षा मे लिया गया। 

पुलिस थाना जैसलमेर में अपहरणकर्ता इस्माईल गिरफतार 

जैसलमेर गत दिनों निहाल खां पुत्र हाजी बरोच खां मुसलमान नि0 मंगालिया बास सम हाल गांधी कोलोनी जैसलमेर ने उपस्थित थाना होकर एक लिखित रिपोर्ट वदी मजमून की पेश की कि आज दिनांक 25.01.13 को वक्त 11.45 एएम पर पर अपने ट्रक न0 आरजे 19 जीसी 8596 के डाईवर अहमद खां पुत्र खैरदीन खां नि0 बम्भारा जो रीको कोलोनी से ट्रक भर कर होटल महादेव के पास पहुंचा जितने मे एक सफेद रंग की गाडी आई जिसमे मे से 34 आदमी नीचे उतरे व अहमद को मारने की कोशिश की तथा गाडी मे डाल कर अपहरण कर लेकर चले गये है। जिस पर पुलिस थाना जैसलमेर में मामला दर्ज कर वीरेन्द्रसिंह निपु थानाधिकारी पुलिस थाना जैसलमेर के नेतृत्व में जब्बरसिंह उनि थानाधिकारी पुलिस थाना झिझनियाली एवं चिमनाराम उनि मय जाब्ता द्वारा मुलजिमो की तलाश की गई। दौराने तलाश आज दिनांक 31.01.13 को मुलजिम इस्माईल पुत्र मठार खां जाति मुसलमान नि0 भम्भारा थाना झिंझनीयाली को पुलिस टीम द्वारा गिरफतार किया गया।




पुलिस थाना जैसलमेर के हल्खा क्षैत्र में अवैध सादा देशी शराब के 40 पव्वे बरामद, 01 गिरफतार

जैसलमेर पुलिस थाना जैसलमेर के हल्खा क्षैत्र में आज दिनांक 31.01.13 हैड कानि0 प्रेमशंकर मय कानि0 गंगा सिंह एवं शेरमोहम्मद द्वारा गडीसर प्रोल के पास अजमाल खां पुत्र सुलेमान खां जाति मुसलमान नि0 पिथोडाई थाना खुहडी के कब्जा से 40 पव्वे सादा देशी शराब के बरामद कर आबकारी अधिनियम के तहत गिरफतार किया गया ।

श्री रामसिंहजी भाटी "पंचाणो" : संक्षिप्त परिचय


श्री रामसिंहजी भाटी "पंचाणो" : संक्षिप्त परिचय



क्षत्रियवंश के अनुपम शौर्य एवं पराक्रम का इतिहास है। क्षत्रिय कुल में प्रमुख वंश सोम वंश है जिसे चंद्रवंशी भी कहते है या कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने इसी वंश में अवतार लेकर धर्म एवं न्याय की पुनः स्थापना की। भगवान श्रीकृष्ण की परम्परा में (भाटी) हुए। भाटियों ने युगों तक प्रजा को सुशासन देकर क्षय से त्राण करने के क्षत्रिय शब्द को सार्थक किया।

धर्म,धरा और क्षात्र


धर्म के अनुपम आदर्शों हेतु असंख्य बलिदान एवं जौहर-शाके कर भाटियों ने (भाटी) नाम को उज्जवल किया। भाटियों का राज्य विस्तार व्यापक रहा है। जैसलमेर भाटियों का अंतिम पड़ाव रहा है। जैसलमेर पर भाटियों ने दीर्घकाल तक शासन कर भारतवर्ष की आक्रमणकारियों से सदा रक्षा की है, यहाँ का अजेय दुर्ग इस बात का मौन साक्षी है। इसी तरह जहाँ-जहाँ भाटियोँ ने अपना राज्य-विस्तार किया वहाँ अभी भी एतिहासिक साक्ष्य पूर्वजों की यश गाथाएँ गा रहे है। इतिहास में भाटियोँ को (छत्राला यादवपति ' एवं 'उतर भङ किवाङ भाटी ) के विङदों से नवाजा गया है।

रामसिंहजी पंचाणोत


महारावल श्री मालदेवजी जिन्होंने तीसरे शाके के बाद ढाई दिन में वापिस किले पर कब्जा कर लिया था उनकी पीढी में श्री खेतसिंह जी के पंचाणदासजी के रामसिंहजी व पृथ्वीराजसिंह हुए। श्री रामसिंह बङे ही वीर एवं प्रतापी योद्धा थे। उन्होंने अपने जीवन में कई लङाईयाँ लङी और विजय प्राप्त की थी। प्रजा रामसिंह को (पतशाह) कह कर पुकारती थी|

रामसिंह जी ने सबलसिंह को महारावल स्थापित करना;जैसलमेर के अयोग्य महारावल श्री रामचंद्र को पदचयुत कर श्री खेतसिंह जी के पौत्र व अपने चचेरे भाई श्री सबलसिंह को महारावल बनाने में मुख्य भूमिका निभाई ।इस संबंध मे निम्न गीत उलेखनीय है-
वर्ग वालिया तिके रामसीध वालिया,
कोट उठाय लियो तठे कहियो ।

कटक मे कितराइकर कोठा करां रामसीध रामसींध होय रयो ॥1॥
दहुंवे हे रामसींध वहुवें हे दूजल पीठ दल रामसींध रहयो भङ गाज ।

रहयो खेगाल फौजा विच रामसींध जूजवे अणी रम राव ॥2॥
शहर लूटे तटे छै राम सींध बड गयंद तिथा बंका देय वाय ।

प्रथीप लाया रामसींध पांचवत पांचवत रामसींध है पतशाया॥3॥
गंढाँ ग्रहण जैसलगरो साहियाँ खाग करतार सारे ।
बात होवे सो रामसीध विचारे नीतो मारको राम दशो देश मारे ॥4॥


रामसिंह जी को जैसलमेर राज्य की दक्षिणी सीमा पर तैनात किया गया इनके वंशज इसी क्षेत्र में आज भी बसते हैँ जो दक्षिणी बसियाँ भी कहलाती है।

पोखरण क्षेत्र विजय : 

मारवाङ क्षेत्र पर आक्रमण कर पोखरण व आस पास क्षेत्र पर विजय प्राप्त कर जैसलमेर का राज्य विस्तार किया व बीकानेर महाराजा श्री करणीसिंह की मध्यस्थता से भाटी राठौङौ का समझौता कराया।
मुल्तान के शाह पर विजय :
श्री रामसिंहजी ने मुल्तान के शाह को पराजित कर अपनी धाक का परिचय दिया। शाह बार-बार जैसलमेर राज्य की सीमाओँ का अतिक्रमण कर लूटमार करता था। इस पर सभी भाटी सामंतोँ की आपात बैठक कर महारावल श्री मनहर जी ने मुल्तान के शाह को दबाने का श्री रामसिंह को सौंपा। श्री रामसिंह जी ने भाटी सेना के साथ शाह को परास्त कर दंड व लूट का माल लेकर जैसलमेर पधारे ।

टांकले राव रामसिंह पर विजय :
श्री रामसिंहजी बड़े ही स्वाभिमानी एवं गोत्र के रखवाले थे ,उन्होंने यादव रामसिंह की सहायता के लिए टांकलेराव रामसिंह को हरा कर दंड स्वरूप उसकी पुत्री का विवाह यादव रामसिंह से कराया तथा उसके अहंकार को चकनाचूर कर दिया। यादव के टांकलेराव की डाली हुई नथ निकाल कर श्री भाटी ने अर्थ दंड कर राव को जीवनदान दिया था ।
श्री रामसिंह जी के वंशज :
रामसिंह जी के पाँच पुत्र हुए । इस संबंध मे निम्न दोहा प्रचलित है ।
करमेति कुनता जैसी,जाया पांडव जैस।
अखो,तेजो,उदलो, दूरजण ने कानेस ॥


श्री अखेराजजी के वंशज गाँव -हरसाणी,मगरा,गोरङिया,फोगेरा,ताणूरावजी,ताणूमानजी,दुधोङा,जानसिंह की बेरी,टावरकी,तुङबी में रहते है श्री तेजमालजी के वंशज,रणधा,तेजमालता,व मोढा मे रहते है श्री उदयसिंहजी के वंशज गाँव जिझनीयाली,कुंडा,बईया,सिहङार,देवङा व भाडली मेँ रहते है श्री दूरजणसिंहजी के गाँव गजेसिंह का गाँव व चेलक मेँ तथा श्री कानसिंह जी के वंशज गाँव -तभणीयार में रहते है। श्री पृथ्वीराज जी के वंशज जोगीदास का गाँव व नवातला में बसते हैं
श्री रामसिंह जी का देहांवसान कांसाऊ में विक्रम संवत् 1777मिति जेठ सुदी पंचमी सोमवार को हुआ , सोढीराणी श्रीमती केसर दे जी साथ मे सती हूँई ॥
श्री राघवपुरी जी की गादी: 
श्री रामसिंहजी के गुरु स्वामी जी श्री राघवपुरी जी जो श्री दयालपुरी जी के शिष्य थे ।श्री रामसिंह का दाह संस्कार श्री राघवपुरी जी की समाधि की गोद मेँ हुआ ।कांसाऊ में गुरु की छतरी व श्री सिंह का देवल बना हुआ था जो संवत् 2063 की बाढ़ मे धस गई. जिसका समस्त पंचाणहोत द्वारा पुननिर्माण संवत् 2066 मिति चेत्र सुदी 6 को पुरा किया गया|

श्री रामसिंह जी के गुरु श्री महाराज राघवपुरी जी जो सिद्ध पुरुष थे उन्होंने पाँच जगह -कांसाऊ ,केशुला,रतेऊ,पांचे की बेरी व धायासर कुँआ(लक्ष्मणा) में समाधि ली॥ इनकी शिष्य परम्परा -श्री सुंदरपुरी जी समाधि कांसाऊ ,शिष्य-श्री वरधपुरी जी -समाधि कांसाऊ,शिष्य-श्री रतनपुरी जी जिन्होंने कांसाऊ छोड़ स्वामी का गाँव बसाया वहाँ पर क: श्री कल्याणपुरीजी,श्री सुगालपुरीजी,श्री
गिरधरपुरीजी श्री बादलपुरीजी,श्री विशनपुरीजी , श्री हिरापुरीजी व वर्तमान में श्री ऊतमपुरीजी गादीपति है
पुजय दादाजी व दादा गुरु जी को शत-शत नमन।
लेखक: भ.लालसिंह भाटी,बईया

ओम बन्ना की यह बुल्लेट मोटरसाइकिल 25 साल से नहीं होने देती दुर्घटना







ओम बन्ना की यह बुल्लेट मोटरसाइकिल 25 साल से नहीं होने देती दुर्घटना 
ओम बन्ना, राजस्थान के मारवाड़ इलाके में कम ही लोग हैं जो इस नाम से परिचित न हों। ओम बन्ना उर्फ ओम सिंह राठौड़। लोग उन्हें उनकी बुलेट मोटरसाइकिल की वजह से जानते हैं और वो भी मौत के बाद। ये बात जितनी हैरतअंगेज है उतनी ही सच भी। पाली से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर एक मोड़ है, जहां पर लगातार दुर्घटनाएं होती थीं। पिता हमेशा नसीहत देकर अपने जवान बेटे को भेजते थे और पत्नी शुभकामनाएं देकर। क्योंकि यह मोड़ उनके रास्ते का हिस्सा था और हर रोज उन्हीं यहीं से अपनी बाइक से आना होता था। उनकी पसंदीदा बुलेट। जो उनकी दोस्त भी थी और हमसफर भी। ओम बन्ना को खुद से ज्यादा भरोसा अपनी बुलेट पर था।1988 में हर रोज की तरह अपना काम खत्म कर देर शाम ओम बन्ना पाली से अपने गांव चोटिला की ओर लौट रहे थे। इस दौरान उन्हें सड़क पर कोई आकृति नजर आई और उन्होंने उसे बचाने के लिए अपनी बाइक घुमा ली। बाइक सीधी एक ट्रक में जा घुसी, भिड़ंत इतनी जबरदस्त थी कि मौके पर ही उनकी मौत हो गई। दुर्घटनाएं इस जगह पर आम थी और अकसर लोगों की मौत भी हो जाती थी। कुछ लोगों ने तो इस जगह को शापित तक करार दे दिया था। पुलिस यहां से उनका शव और बाइक थाने ले गई।परिवार को जवान बेटे की मौत की सूचना दी गई। कोई यकीन नहीं कर पा रहा था कि इतना नेकदिल युवक कम उम्र में चल बसा। परिवार बेटे का शव लेकर घर पहुंचा और अंतिम क्रियाकर्म की तैयारी ही कर रहा था कि थाने से कुछ पुलिसवाले पहुंचे और कहा कि आप लोग थाने से बाइक भी उठा लाए क्या? परिवार ने अनभिज्ञता जाहिर की। उन्हें तो अपने बेटे की फिक्र थी, वहां पर बाइक के बारे में कौन सोचता। पुलिसकर्मी भी हैरान हो गए कि बाइक कहां गई। तभी किसी ने सूचना दी कि बाइक तो वहीं है जहां कल रात एक्सीडेंट हुआ था। लोग हैरान रह गए। आखिर बाइक वहां कैसे हो सकती है। कुछ देर पहले ही तो थाने लाए थे, कोई लेकर भी नहीं गया।पुलिसकर्मी फिर दुर्घटनास्थल पर गए तो बाइक वहीं थी। बुलेट को एक बार फिर थाने ले जाया गया लेकिन अगली सुबह बुलेट फिर थाने से गायब और उसी दुर्घटनास्थल पर। पुलिस हैरान थी, परिवार उनसे भी ज्यादा। इस बार पुलिसकर्मियों ने परिवार के लोगों से कहा कि क्यों ने बाइक को घर पर खड़ा कर दिया जाए शायद फिर ऐसा न हो। बुलेट को घर ले आया गया लेकिन अगली ही सुबह बुलेट उसी जगह पहुंच गई जहां एक्सिडेंट हुआ था।बाइक न सिर्फ उसी हाइवे पर पहुंची बल्कि उस रात कुछ और दुर्घटनाएं होने से बच गई। अगली सुबह ट्रक चालकों ने बताया कि एक दो बार उन्हें भी उसी मोड़ पर आभास हुआ कि कोई है और वो ट्रक को सड़क से उतारते या किसी ओर तरफ मोड़ते, उससे पहले ही उन्हें बाइक की रोशनी में दिखा कि सड़क साफ है और वहां कुछ नहीं। वे आराम से सड़क से गुजर गए। वो बाइक उसी खूनी मोड़ के आसपास अकसर देखी जाने लगी और एक्सीडेंट्स होने बंद हो गए।लोगों में ओम बन्ना की इस बाइक के प्रति अथाह आस्था जागी और भरोसा हो गया कि वे इस इलाके के रक्षक हो गए हैं। हर रात वे इस खूनी मोड़ के आसपास रहते हैं और यहां होने वाले दुर्घटनाओं को रोक देते हैं। तब से उनकी स्मृति में इसी बाइक को यहीं हाइवे पर खड़ा कर दिया गया है और पिछले 25 साल से यह बाइक यहां सड़क से गुजरने वालों की रक्षा करती है। यहां से गुजरने वाले सभी वाहन चालक उन्हें धोक देकर (मत्था टेककर) निकलते हैं, इसी विश्वास के साथ कि ओम बन्ना उनकी रक्षा कर रहे हैं।अब तो बाकायदा यहां पर उनका मंदिर बना दिया गया है, जहां पर उनकी बुलेट मोटर साईकिल की पूजा होती है। और बाकायदा लोग उस मोटर साईकिल से भी मन्नत मांगते है और हां इस चमत्कारी मोटर साईकिल ने आज से 25 साल पहले सिर्फ स्थानीय लोगों को ही नहीं बल्कि पुलिस वालों को भी चमत्कार दिखा आश्चर्यचकित कर दिया था। आज भी इस थाने में नई नियुक्ति पर आने वाला हर पुलिस कर्मी ड्यूटी ज्वाइन करने से पहले यहां मत्था टेकने जरूर आता है।जोधपुर अहमदाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर जोधपुर से पाली जाते वक्त पाली से लगभग 20 किलोमीटर भीड़ से घिरा एक चबूतरा जिस पर ओम बन्ना एक बड़ी सी फोटो लगी है। चबूतरे के पास ही नजर आती है एक फूल मालाओं से लदी बुलेट मोटर साईकिल। यह "ओम बन्ना " का स्थान है। ओम बन्ना ( ओम सिंह राठौड़ ) पाली शहर के पास ही स्थित चोटिला गांव के ठाकुर जोग सिंह राठौड़ के पुत्र थे और इसी स्थान पर अपनी इसी बुलेट मोटर साईकिल से जाते हुए 1988 में एक दुर्घटना में उनका निधन हो गया था। स्थानीय लोगों के अनुसार इस स्थान पर हर रोज कोई न कोई वाहन दुर्घटना का शिकार हो जाया करता था। जिस पेड़ के पास ओम सिंह राठौड़ की दुर्घटना घटी, उसी जगह पता नहीं कैसे कई वाहन दुर्घटना का शिकार हो जाते थे।लेकिन जिस दिन से ओम बन्ना का निधन हुआ, यहां पर दुर्घटनाएं होनी बंद हो गईं। बार-बार बुलेट के खुद ब खुद दुर्घटनास्थल पर पहुंचने के बाद उनकी पिताजी ने इसे ओम सिंह की मृत आत्मा की इच्छा समझ कर उसे वहीं पेड़ के पास रखवा दिया। इसके बाद रात में वाहन चालकों को ओम सिंह अक्सर वाहनों को दुर्घटना से बचाने के उपाय करते व चालकों को रात्रि में दुर्घटना से सावधान करते दिखाई देने लगे। वे उस दुर्घटना संभावित जगह तक पहुंचने वाले वाहन को जबरदस्ती रोक देते या धीरे कर देते ताकि उनकी तरह कोई और वाहन चालक असामयिक मौत का शिकार न बने। इसके बाद से वहां पर इस तरह की दुर्घटनाएं लगभग बंद ही हो गईं।

नए जमाने की खेती से समृद्धि ला रही हैं हवाकँवर


मरुथल में पसरा हरियाली का पैगाम,  हवाएँ गा रही हैं समृद्धि के गीत
नए जमाने की खेती से समृद्धि ला रही हैं हवाकँवर
डॉदीपक आचार्य
जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी,
जैसलमेर


            

मन में कुछ करने का संकल्प हो और सुदृढ़ इच्छा शक्ति से कर्मयोग को साकार करने की भावना हो तो किसी भी तरह बदलाव लाना कोर्इ्रमुश्किल काम नहीं है। मरुस्थलीय जैसलमेर जिले की एक काश्तकार श्रीमती हवाकँवर ने खेती-बाड़ी को जीवन का लक्ष्य मानकर जो कुछ किया है वहअनुकरणीय व सराहनीय है।


इस महिला कृषक ने खेती के क्षेत्र में अपने कर्मयोग को इतना साकार कर दिखाया है कि श्रम से समृद्धि के इस सफर का जयगान मरुभूमि की हवाएँभी करने लगी हैं। कृषि के प्रति उसकी लगन, समर्पण और ज़ज़्बे की कद्र करते हुए प्रगतिशील काश्तकार श्रीमती हवा कँवर को गत वर्ष 18 सितम्बर को जयपुरमें आयोजित राज्यस्तरीय समारोह में मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने सम्मानित कर हौसला आफजाही भी की।


जैसलमेर जिले की फतेहगढ़ तहसील अन्तर्गत सम पंचायत समिति की मूलाना ग्राम पंचायत निवासी श्रीमती हवाकँवर राजपूत पत्नी श्री सवाईसिंहकी मूलाना की रोही में बारह हैक्टर बारानी कृषि भूमि है।


खेत का भरपूर उपयोग दे रहा बरकत


ऐसे में जिस साल अच्छी बरसात होती उस वर्ष वह अपने खेत में वर्षा आधारित फसल के रूप में ग्वार की खेती ही कर पाती थी। अच्छी बरसात वालेसाल में दो से तीन क्विंटल प्रति हैक्टर ग्वार की पैदावार होती लेकिन अन्य वर्षों में पर्याप्त बारिश नहीं होने पर अकाल जैसे हालात रहते और इस कृषि भूमि काकोई ख़ास उपयोग नहीं हो पाता था।


कृषि विभाग की बदौलत आजमायी वैज्ञानिक विधियां


इन स्थितियों में अपने खेत का पूरा-पूरा उपयोग करने की दृष्टि से वर्ष 2009-10 में उन्होंने कृषि कूआ बनवाया। इस कूए की सहायता से उन्होंनेसिंचित खेती की शुरूआत की लेकिन सिंचित काश्त का पूरा अनुभव नहीं होने के कारण फसलों का अपेक्षित उत्पादन सामने नहीं आ पाया।


इसके बाद वर्ष 2010-11 में कृषि विभाग से सलाह करके उन्होंने खेती की। इससे उत्साहित होकर अब लगातार कृषि विभाग के सम्पर्क में रहकर खेतीकी उन्नत कृषि विधियां अपना कर खेती का लाभ उठा रही हैं। इसका सीधा फायदा यह हुआ कि अब वे खरीफ और रबी की फसलों की अच्छी पैदावार ले रही है।


उत्पादों को मिला बेहतर विपणन


खेती-बाड़ी की सभी उन्नत और जरूरी विधियों का वे अपने खेत में प्रयोग कर रही हैं। श्रीमती हवा कँवर ने बीज उपचार को अपना मिशन बना रखा हैऔर खेती में वे सभी फसलों की उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीजों, संतुलित ऊर्वरकों आदि का प्रयोग कर रही हैं। फसलों की सुरक्षा के लिये कीट व्याधि का समयपर नियंत्रण किया जा रहा है। अपने खेत में जीरा एवं ईसबगोल के फसलों की अच्छी उपज पाने के लिए वे अपने उत्पादों को ऊँझा मण्डी में बेचती रही हैं।


इनके यहां ग्वार की फसल 4 हैक्टर में हुई जिसकी पैदावार 12 से 14 क्विंटल प्रति हैक्टर पायी। इसके अलावा चार हैक्टर में 28 से 30 क्विंटल प्रतिहैक्टर मूंगफली का उत्पादन भी पाया। इसी प्रकार 3.5 हैक्टर में मूंग की फसल बो कर प्रति हैक्टर 8 से 9 क्विंटल मूंग उत्पादन पाया है। गत बार रबी में इनकेखेत में पांच हैक्टर में जीरा की फसल लेकर 5 से 6 क्विंटल प्रति हैक्टर जीरा पाया। इसी प्रकार चार हैक्टर में ईसबगोल की फसल बोकर प्रति हैक्टर सात से आठक्विंटल ईसबगोल की प्राप्ति की गई। उन्होंने 3.5 हैक्टर में सरसों की फसल बोकर प्रति हैक्टर 12 से 14 क्विंटल सरसों की पैदावार

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ट्रक में घुसी स्लीपर बस,तीन की मौत

ट्रक में घुसी स्लीपर बस,तीन की मौत
जयपुर। जयपुर-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित शाहपुरा थाना इलाके के लोचूकावास मोड़ के समीप गुरूवार सुबह साढ़े पांच बजे दिल्ली से आ रही एक स्लीपर कोच आगे चल रहे ट्रक में जा घुसी। घटना में तीन यात्रियों की मौत हो गई,जबकि एक दर्जन से अधिक घायल हो गए।

जिन्हें एसएमएस अस्पताल में भर्ती कराया गया है। जानकारी के अनुसार गुरूवार सुबह आगे चल रहे ट्रक के अचानक रूकने से बस का करीब एक चौथाई हिस्सा ट्रक में घुस गया। पुलिस ने स्थानीय लोगों की मदद से बस में फंसे यात्रियों को बाहर निकाला। हादसे में दिल्ली के कृष्णा नगर निवासी राजकुमार गुप्ता ने मौके पर ही दम तोड़ दिया,बद्रीनारायण बुनकर व एक अज्ञात युवक की इलाज के दौरान शाहपुरा अस्पताल में मौत हो गई।

ये हुए घायल
पुलिस के अनुसार घटना में दिल्ली निवासी कासिम(45),सवाई माधोपुर निवासी आसाराम (27),आकाश बैरवा (19),अलीगढ़ निवासी ज्ञानेंद्र (24),पटना निवासी धर्मेद्र (23),मुजफ्फरनगर निवासी सलमा बेगम (52),कोलकाता निवासी मोहम्मद सलीम (57),हरदीप बेगम (55),दिल्ली निवासी नमिता गुप्ता(35),अक्षय गुप्ता (10) घायल हो गए। इन सभी को इलाज के लिए एसएमएस अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

विश्व की सबसे बड़ा पुस्तकालय भादरिया मंदिर में

विश्व की सबसे बड़ा पुस्तकालय  भादरिया मंदिर में 


श्री भादरिया राय मन्दिर स्थान जैसलमेर से करीब ८० की. मी. जोधपुर रोड धोलिया ग्राम से १० की. मी. उतर की तरफ़ हें ! उक्त स्थान के पास एक भादरिया नमक राजपूत रहता था उसका पुरा परिवार आवड़ा माता का भक्त था ! जिसमे उक्त महाशय की पुत्री जिसका नाम बुली बाई था वह मैया की अनन्य भक्त थी ! उसकी भक्ति की चर्चाए सुनकर माड़ प्रदेश के महाराजा साहब पुरे रनिवास सहित उक्त जगह पधारे , बुली बाई से महारानी जी ने साक्षात रूप मे मैया के दर्शन कराने का निवेदन किया ! उक्त तपस्वनी ने मैया का ध्यान लगाया , भक्तो के वस भगवान होते हें ! मैया उसी समय सातो बहने व भाई के साथ सहित पधार गई ! सभी मे गद गद स्वर मे मैया का अभिवादन किया तब रजा ने मैया से निवेदन किया मैया आप सभी परिवार सहित किस जगह विराजमान हें तब मैया ने फ़रमाया मे काले उचे पर्वत पर रहती हू ! इस प्रकार मैया वहा से रावण हो गई , मैया के दर्शन पाने से सभी का जीवन धन्य हुवा ! उसी स्थान पर भक्त भादरिये के नाम से भादरिया राय मन्दिर स्थान महाराजा की प्रेणना से बनाया गया !
उन दिनोँ बिकानेँर व जैसलमेर के बिच एक युध्द हुआ,जो जैसलमेर की विजय पर खत्म हुआँ। जिस पर महारावल गज सिँह जी ने इस मंदिर का निर्माण कराया ।

बाड़मेर शहर में मिला बम का जखीरा

बाड़मेर शहर में मिला बम का जखीरा

बाड़मेर। बाड़मेर शहर में बुधवार को जमीन में दबे बमों का जखीरा मिलने से सनसनी फैल गई। शहर के बॉर्डर होमगार्ड परिसर में एक साथ साठ बम मिलने से होमगार्ड परिसर के आस-पास आबाद मौहल्लों में भय व्याप्त हो गया। सेना विशेषज्ञों के सहयोग से पुलिस ने सभी बमों को सुरक्षित रखवाया है, जिनका संभवत: गुरूवार को निस्तारण होगा।

बॉर्डर होमगार्ड परिसर में मिनी स्टेडियम के निर्माण के दौरान दस दिन पहले खुदाई में छह बम मिले थे, जिनके निस्तारण के लिए सैन्य स्टेशन जसाई से विशेषज्ञों की टीम बुधवार को होमगार्ड मुख्यालय पहुंची। उन्होंने मौका मुआयना करने के दौरान अनुमान लगाया कि जिस स्थान पर छह बम मिले, वहां और भी बम हो सकते हैं। उनका अनुमान सही निकला और खुदाई में बमों का जखीरा मिला। यहां साठ बम मिले, जिसमें अधिकांश बम पर कैप लगी है और बारूद भरा है। सभी बमों पर 1965 का टेग लगा है। संभवत: 1965 के भारत-पाक युद्ध में बम यहीं दबे रह गए। अब तक होमगार्ड परिसर मे मिले बमों की संख्या छियासठ हो गई है। बमों के मिलने की सूचना पर पुलिस अधीक्षक राहुल बारहट मौके पर पहुंचे। उन्होंने सेना विशेषज्ञों के साथ विचार विमर्श कर आवश्यक कार्रवाई हो अंजाम दिया।

गढढ्े में रखवाए बम
होमगार्ड परिसर व आस-पास आबादी के मद्देनजर सभी बमो को सुरक्षित रखवाया गया। एक बड़ा गढढ्ा खोदकर सभी बम उसमें रखवाए। सेना विशेषज्ञो ने होमगार्ड अधिकारियों व जवानों को दिशा निर्देश दिए। पुलिस अधीक्षक ने चेतक वाहन को गश्त पर रहने के निर्देश दिए।

बर्बाद हो जाता बाड़मेर
बॉर्डर होमगार्ड परिसर के ठीक पास आकाशवाणी केन्द्र है। यहां से 500 मीटर के दायरे में पुलिस लाइन, जेल, कलेक्ट्रेट, कलक्टर-एसपी सहित तमाम अधिकारियों के आवास और आबादी है। बमों का जखीरा यदि फट जाता तो तबाही मच जाती। जानकारों का कहना है कि तबाही का असर करीब ढाई किलोमीटर तक रहता। ऎसे में पूरा बाड़मेर बर्बाद हो जाता।
पूरे परिसर में सर्च करेंगे

साठ बम बुधवार को मिले हैं, जिसमें कई बम जीवित दिखाई दे रहे हैं। सेना विशेषज्ञ गुरूवार को होमगार्ड परिसर में ही बमों का निस्तारण करवाएंगे। सभी बम सुरक्षित रखवाए हैं। पूरे होमगार्ड परिसर में सर्च ऑपरेशन किया जाएगा।

-राहुल बारहट, पुलिस अधीक्षक बाड़मेर

जवानों को तनाव से छुटकारे का नया तरीका

जवानों को तनाव से छुटकारे का नया तरीका

बाड़मेर। सीमा सुरक्षा बल के बेड़े में जवानों के आत्महत्याओं के ग्राफ में हो रही बढ़ोतरी रोकने के मकसद से नया तरीका इजाद किया गया है। बीएसएफ ने स्वयंसेवी संगठन बी फ्रेण्डर्स इण्टरनेशनल से सम्बद्ध आत्महत्या निवारण केन्द्रों का सहारा लेना शुरू किया है।

ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एण्ड डवलपमेण्ट (बीपीआर एण्ड डी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले आठ साल में ढाई सौ से ज्यादा जवानों ने अपनी इहलीला समाप्त कर ली। इस रिपोर्ट में जवानों की ओर से की जा रही आत्महत्याओं के कारणों का भी खुलासा किया गया है। जवानों के बीच किए गए सर्वे और विभिन्न हादसों की जांच रिपोर्ट के आधार पर बीपीआर एण्ड डी की इस रिपोर्ट में आत्महत्या करने के दो सबसे बड़े कारण बताए गए है। इनमें पहला यह बताया गया है कि 77 फीसदी जवान कठिन ड्यटी के कारण पर्याप्त नींद नहीं ले पाते हैं। सर्वे के अनुसार रिपोर्ट में बताया गया है कि जवान दिन में केवल चार घंटे ही नींद ले पाते है। रिपोर्ट में दूसरा सबसे बड़ा कारण जवानों को सीसुब बेडे की ओर से मिलने वाली सुविधाओं में कमी और उच्चस्थ अधिकारियों का उपेक्षा पूर्ण व्यवहार व भाषा है।

लिसनिंग थैरेपी से समाधान
बीएसएफ ने जवानों के मानसिक तनाव दूर करने के लिए बी फे्रण्ड्स इण्टरनेशनल की मदद ली है। बीएसएफ की कमोबेश हर सीमा चौकी पर बी फ्रेण्ड्स इण्टरनेशनल द्वारा संचालित आत्महत्या निवारण केन्द्रों के अलग-अलग दूरभाष नम्बर अंकित किए है। प्रत्येक सीमा चौकी पर नई दिल्ली,अहमदाबाद, कोलकाता व मुम्बई शहरों में संचालित केन्द्रों के दूरभाष नम्बर लिखे है। इन केन्द्रों पर कॉल करने वाले प्रत्येक जवान का नाम व पहचान गुप्त रखी जाती है। कॉल के अलावा कोई कार्मिक इन केन्द्रों पर जाकर व्यक्तिगत रूप से भी अपनी समस्या बताकर समाधान करवा सकता है।

हम समाधान के तरीके बताते हैं
आत्महत्या निवारण केन्द्रों पर फोन करके अथवा सीधे पहुंचकर समस्याएं बताने वाले सुरक्षा एजेन्सियों के कार्मिकों को हम समाधान के तरीके बताते है। हमारे यहां भावनात्मक रूप से सुनवाई होती है और समाधान के तरीके बताए जाते हैं। इससे मानसिक मजबूती बढ़ती है।
घनश्याम
वालिण्टियर, बी फ्रेण्डर्स इन्टरनेशनल, अहमदाबाद

दूल्हे की उठी डोली, विदा होकर गया ससुराल


groom goes in laws home
पानीपत। हमारी परंपरा रही है कि बेटियों को ही अपने माता-पिता और घर-बार को छोड़कर शादी के बाद ससुराल में बसना पड़ता है और पति के परिजनों में ही प्यार टटोलना पड़ता है, लेकिन अब सिरसा (हरियाणा) स्थित डेरा सच्चा सौदा ने एक अनोखी मुहिम शुरू की है, जिसमें बेटों को ससुराल में जाकर रहना पड़ेगा। दूल्हे को लड़की के माता-पिता को ही अपने माता-पिता मानकर उनकी सेवा करनी होगी।

भू्रणहत्या रोकने व बेटियाें को बेटाें के समान समाज में अधिकार दिलवाने के उद्देश्य से डेरा सच्चा सौदा द्वारा 73वें मानवता भलाई कार्य के रूप में 'कुल का क्रॉउन' मुहिम चलाई गई है। इसके तहत शनिवार को बारात लेकर पहुंचने वाली सिरसा निवासी तुलसी इन्सां रविवार को अपने दूल्हे पवन इन्सां के साथ अपने मायके में पहुंची। नवविवाहित युवक व युवती के परिवारजनाें व रिश्तेदारों के साथ-साथ कॉलोनीवासियाें ने भी उनका जोरदार स्वागत किया। परिवार के सदस्याें ने दूल्हे का परंपरागत रीति -रिवाज से गृह प्रवेश कराया।

इसी तरह पानीपत की सुरुचि भी डेरा सच्चा की मुहिम के तहत दूल्हे को सिरसा से ब्याह कर पानीपत लाई। श्री प्रेम मंदिर के पास रहने वाली सुरुचि अपने माता-पिता की इकलौती संतान हैं और बीकॉम द्वितीय वर्ष में पढ़ती है। शनिवार को सुरुचि बरात लेकर गई और डेरा सच्चा सौदा में सिरसा के निजीया खेड़ा निवासी राजबीर से शादी रचाई। परंपरा के अनुसार, दुल्हन पहले जयमाला डालती है, लेकिन राजबीर ने पहले दुल्हन को जयमाला डाली। सुरुचि का मां सुनीता का कहना है कि वह राजबीर को अपने बेटे की तरह रखेंगी।

नशे में बेटी को बनाया हवस का शिकार!

नशे में बेटी को बनाया हवस का शिकार!
जबलपुर। मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में बेटी को हवस का शिकार बनाने वाले पिता को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। आरोपी शराब के नशे में बेटी को पत्नी समझने की बात कह रहा है। पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार बरगी थानान्तर्गत बढ़ईया खेड़ा निवासी व्यक्ति ने अपनी नाबालिग बेटी को जान से मारने की धमकी देकर हवस का शिकार बना डाला। पिता-पुत्री के पवित्र रिश्ते को कलंकित करने वाले आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।

बरगी थाना प्रभारी पुरूषोत्तम पांडे ने बुधवार को बताया कि बढ़ईया खेड़ा निवासी 15 वर्षीय किशोरी ने रिपोर्ट दर्ज कराई है कि सोमवार-मंगलवार की दरम्यानी रात को वह कमरे में अपनी मां के साथ सो रही थी तभी उसका पिता दशई लाल उइके कमरे में आया और जान से मारने की धमकी देकर उसके साथ अनैतिक कार्य किया। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर उसके खिलाफ धारा 376 के तहत प्रकरण दर्ज कर लिया है।

विवेचना अधिकारी व भेडाडाट थाना प्रभारी सुस्मिता नियोगी ने बताया कि मेडिकल रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि हो गई है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक आरोपी अपना जुर्म नहीं स्वीकार कर रहा था। बाद में शराब के नशे में बेटी को पत्नी समझकर शारीरिक संबंध बनाने की बात कहने लगा।

वसुंधरा राजे होगी नई प्रदेशाध्यक्षा ..!

वसुंधरा राजे  होगी नई प्रदेशाध्यक्षा ..!

राजस्थान में भाजपा के नए अध्यक्ष और मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने का फैसला अगले तीन-चार दिन में होगा। भाजपा आलाकमान ने वसुंधरा राजे को इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने का मानस बना लिया है।वसुंधरा राजे के नाम की घोषणा किसी भी वक़्त हो सकती हे .उन्हें प्रदेश  का दायित्व  जा रहा हें 

भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने केन्द्रीय नेताओं के साथ ही राजस्थान के वरिष्ठ नेताओं से चर्चा के बाद वसुंधरा राजे को चुनाव से पूर्व मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने का मानस बनाया है। हालांकि संघ और संगठन से जुड़े राजस्थान के कुछ नेता अभी भी चुनाव से पूर्व वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट नहीं करने और पूर्व राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष रामदास अग्रवाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाने को लेकर अड़े हुए है, लेकिन वसुंधरा राजे की लोकप्रियता एवं पार्टी विधायकों, सांसदों, कार्यकर्ताओं में उनकी पकड़ को देखते हुए आलाकमान उन्हें मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने को तैयार हो गया। टिकट वितरण की कमान भी वसुंधरा राजे के हाथ में ही रहेगी। चुनाव संचालन समिति तो बनेगी, लेकिन पूरा चुनाव अभियान वसुंधरा राजे ही संभालेगी।

राजस्थान भाजपा के विवाद को देख रहे वरिष्ठ नेता अरुण जेटली और प्रदेश प्रभारी कप्तान सिंह सोलंकी ने भी वसुंधरा राजे को चुनाव से पूर्व मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने में फायदा बताते हुए राजनाथ सिंह से शीघ्र निर्णय लेने का आग्रह किया।

दैनिक जागरण से बातचीत में सोलंकी ने कहा कि राजस्थान के बारे इसी सप्ताह में संभवतया फैसला हो जाएगा। सोलंकी ने वसुंधरा राजे को सीएम प्रोजेक्ट करने के सवाल पर कहा कि इस बारे में किसी को शंका या किसी तरह का संदेह नहीं होना चाहिए। राजनाथ सिंह के अध्यक्ष पद संभालने के बाद से ही वसुंधरा समर्थक ओर विरोधी दिल्ली में डेरा डाले हुए है।

वसुंधरा विरोधी खेमे की कमान संभाल रहे वरिष्ठ नेता गुलाब चंद कटारिया, प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी, घनश्याम तिवाड़ी सहित संघ से जुडे़ कई नेता दिल्ली में डटे हुए है। ये नेता रामदास अग्रवाल को अध्यक्ष बनवाना चाहते है। वहीं वसुंधरा समर्थक चाहते है कि उन्हें ही प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान भी सौंपी जाए। दोनों खेमों की खींचतान के बीच आलाकमान वसुंधरा राजे को सीएम प्रोजेक्ट करने को तो तैयार हो गया,लेकिन अध्यक्ष पद को लेकर निर्णय अगले एक-दो दिन में होगा।

संघ से जुड़े नेताओं को उम्मीद है कि राजनाथ सिंह के वसुंधरा राजे से पूर्व में भी मधुर सम्बन्ध नहीं रहे है, इसलिए अब भी वे दबाव में आकर कोई निर्णय नहीं करेंगे। वहीं वसुंधरा समर्थकों को उम्मीद है कि प्रदेश अध्यक्ष पद का निर्णय बिना उनकी मर्जी से नहीं होगा। आलाकमान भी यह जानता है कि वसुंधरा ही प्रदेश में एकमात्र जनाधार वाली नेता है,इसलिए या तो उन्हें ही अध्यक्ष बनाया जायेगा अथवा उनकी पसंद के नेता को अध्यक्ष पद की कुर्सी मिलेगी।

राजस्थान को लेकर चल रही कसरत के बीच वरिष्ठ नेता ओमप्रकाश माथुर, घनश्याम तिवाड़ी और गुलाबचंद कटारिया ने दिल्ली में मंगलवार को राजनाथ सिंह से मुलाकात की। वहीं वसुंधरा राजे, अरुण चतुर्वेदी, रामदास अग्रवाल भी मुलाकातों में व्यस्त रहें।

बुधवार, 30 जनवरी 2013

जिफ २०१३ का शुभारंभ किया हेमा मालिनी ने


जिफ २०१३ का शुभारंभ किया हेमा मालिनी ने 

जयपुर, ३० जनवरी. जयपुर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर एक नयी ख्याति दिलाने वाले पांचवें जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टीवल का आज शाम शहर के गोलछा सिनेमा हॉल में शुभारंभ हुआ. सुप्रसिद्व सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी ने दीप प्रज्ज्वलित कर इस पांच दिवसीय समारोह का आगाज किया. इस अवसर पर जिफ की ओर से प्रेम चोपड़ा , हेमा मालिनी एवं ऑस्कर विजेता निर्देशक मार्क बाषित द्वारा अपने दौर की मशहूर अभिनेत्री शर्मिला टेगौर को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड प्रदान किया गया. शर्मिला टेगौर ने इस अवसर पर कहा कि मैं तहेदिल से जयपुर और जयपुरवासियों का शुक्रिया अदा करती हूँ कि उन्होंने मुझे लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड के लिए यहाँ आमंत्रित किया. गुलाबी नगर ने अपनी संस्कृति और मेहमाननवाजी के लिए देश ही नहीं , विदेशों में भी खास पहचान कायम की है. मैं भी आप सबके बीच यहाँ आकर काफी अभिभूत हूँ. वैसे भी जयपुर सहित पूरे राजस्थान का सिनेमा से गहरा नाता रहा है. यहाँ के किले , महल, और धोरे हमेशा से बड़े परदे की शान रहे हैं. मेरी तरफ से आप सभी को इस आयोजन के लिए ढेरों शुभकामनाएं.सिनेमा को नयी पहचान देने के उद्देश्य से लगाया गया आपका यह पौधा जल्द ही वटवृक्ष का रूप ले ले , साथ ही मैं इस मौके पर देश और विदेशों से आये युवा फिल्म मेकर्स को बढ़ाई देना चाहती हूँ कि वो मुख्यधारा के सिनेमा से इतर अपनी पहचान कायम करने में लगे हैं. हेमा मालिनी ने जिफ में मुख्य अतिथि के रूप में बुलाये जाने पर आभार व्यक्त किया और फेस्टीवल की सफलता के लिए शुभकामनायें दी. 

जिफ के निदेशक हनुरोज़ ने बताया कि यह गर्व की नहीं पर खुशी की बात अवश्य है कि एक थियेटर से शुरू हुआ जिफ आज पांचवें साल में आठ विभिन्न स्थलों पर ग्यारह स्क्रीन तक पहुँच गया है और इसके फिल्म बाज़ार की गिनती दुनिया के दूसरे बड़े फिल्म समारोहों के साथ होने लगी है. इस बार हमें ९० देशों की चौदह सौ से भी अधिक फ़िल्में मिली थी जिनमें से २१७ फिल्मों का चयन किया गया है. एक और गर्व करने की बात यह है कि जिफ के इस समारोह में जो फ़िल्में दिखाई जा रही है उनमें से १८० फिल्मों के निर्माता-निर्देशक अथवा स्टारकास्ट पांच दिनों में यहाँ अपनी उपस्थिति देने जा रहे हैं. सेमिनार और वर्कशॉप के लिए देश के दिग्गज फिल्म विशेषज्ञ जयप्रकाश चौकसे, कोमल नाहटा, अरुण दत्त, बी बी नागपाल आपके बीच मौजूद हैं.

इस अवसर पर प्रेम चोपड़ा, अरुण दत्त व जयप्रकाश चौकसे सहित जिफ की ज्यूरी के सभी चौदह सदस्यों का भी स्वागत किया गया.

पांचवें इंटर नेशनल फिल्म समारोह की ओपनिंग फिल्म के रूप में इंग्लेंड निवासी संगीता दत्ता की लाइफ गोज ओन को दिखया गया. ओम पुरी व शर्मीला टैगोर अभिनित इस फिल्म में सोहा अली व गिरीश कर्नाड भी हैं एवं इसके गीत जावेद अख्तर ने लिखे हैं. शेक्सपियर के मशहूर नाटक किंग लियर से अभिप्रेरित इस कहानी के केन्द्र में एक आधुनिक भारतीय बंगाली चिकित्सक का परिवार है जो लन्दन में रहता है. डॉ संजय की पत्नी मंजू का अचानक निधन हो जाता है. संजय अपनी दो बेटियों को आधुनिक परिवेश में पालने में अनेक चुनौतियों से जूझता है खासकर अपनी छोटी बेटी रिया जोकि एक मुस्लिम लड़के से प्रेम करती है. संजय को अपना बचपन और बंगाल विभाजन के दौरान हुए हिंदू-मुस्लिम फसाद का दर्द याद आ जाता है. इसके साथ ही एक पांच मिनिट की शॉर्ट फिल्म जन गण मन भी प्रदर्शित की गई जिसमें राष्ट्रीय गीत के प्रति सम्मान की भावना को दिखाया गया है.