गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

आज भी कायम हैं धर्मेला करने की अनूठी परम्परा


साम्प्रदायिक  सदभावना का प्रतीक 



आज भी कायम हैं धर्मेला करने की अनूठी परम्परा 


बाडमेर थार नगरी की संस्कृति सभ्यता एवं परम्पराएं समृद्ध हैं। यहां की लोक संस्कृति, सभ्यता तथा परम्परा का जो रूप देखने को मिलता हैं वह सदियों से निर्वाह होता आ रहा हैं। ग्रामीण अंचलो से लेकर आधुनिक शहर में आज भी परम्पराओं का निर्वाह होता हैं। 
क्षौत्र में धर्मेला करने की अनूठी परम्परा यहां की लोक संस्कृति व सभ्यता को ऊंचाई प्रदान करती हैं। परम्परा अनुसार ’’नवविवाहिता’’ जब शादी कर ’’ससुराल’’ पहली बार आती हैं तो अनजानी जगहों पर ’’अपनों’’ की कमी महसूस होती हैं। गोवों में तो आज भी युवक काम की तलाश में आज भी परदेश जाते हैं। पति के परदेश कमाने जाने के बाद नव विवाहिता घर में अकेली अपने मायके की याद में आंसू न बहाए मायके की याद कुछ कम हो इसके लिए गांव में ही नव विवाहिता को अच्छे परिवार के ’’खोले’’ डाला जाता हैं, जिसे स्थानीय भाषा में धर्मेला करना कहते हैं। धर्मेला की परम्परा में धर्मभाई या धर्म पिता बनाने की परम्परा हैं। धर्मेला में विवाहिता को अपने पीहर जितनी इज्जत, मान, सम्मान अपने दूसरे धर्मेले पीहर मे मिलता हैं। ब्याह, विवाह, सगाई, तीज, त्यौहार पर धर्मेला परिवार अपनी पुत्री के समान विवाहिता को सम्मान देते हैं। अपणायत व आत्मीयता के दर्शन मालाणी क्षेत्र में ही सम्भव हैं। इसी मस्स्थलीय जिले में ’’बाईबहनों’’ को ’’पानी पिलाने’’ की लोक परम्परा का निर्वाह आज भी कायम हैं। पुत्री के प्रथम प्रसव के सातवें अथवा नवें माह के प्रारम्भ में उसे सफल प्रसव हेतु ससुरालपीहर लाया जाता हैं। इसमें पिता अथवा भाई अपनी पुत्री अथवा बहन के प्रसव से पूर्व अच्छा मुहूर्त देखकर पीहर के लिए विदा करते हैं। प्रसव पश्चात पहीर पक्ष से अपनी पुत्री को ’’रीत’’ देकर ससुराल पहुंचाई जाती हैं। मायके में पुत्री को पूरा मान सम्मान थार की परम्परा हैं। मायरा लोक परम्परा में ऊंचा स्थान रखता हैं। भाईबहन के मधुर व आत्मीय सम्बन्धों को साकार व सुदृ़ करने की परम्परा बहुत पुरानी हैं। इस परम्परानुसार बहन के बड़े पुत्र या पुत्री की शादी से पूर्व ननिहाल की ओर से भेंट जाती हैं। यह भेंट जिसमें कपड़े, आभूषण, नकदी, फल, मिठाई आदि होती हैं को अपने लोगो को साथ लेकर थालों में सामान सजाकर बहन के घर ससम्मान पहुंचाया जाता हैं। ’’मायरा’’ लेकर आए भाई व परिजनों को कुंकुमटीका लगाकर आरती उतार कर ससम्मान घर में प्रवेश दिया जाता हैं। भाईबहन को चूनडी ओ़ाकर सिर पर हाथ फेरता हैं तथा बहन के साथ अपने आत्मीय व मधुर सम्बन्धों का साक्षी बनाता हैं। ’’मायरा’’ सभी लोगो को दिखाया जाता हैं। 

1 टिप्पणी:

  1. bahut jabrdast rewti-riwaaj hai.... pr dukh bi hota hai jb.... kuch kooritiyo se pichhte huye garib logo ko dekhte hai... ya kuchh bhai- bahno ko majbooriyo se unchaahe rishte taaumar jhelne padte hai.....

    baaki parmprao k to dhni hai hm.. kuch ek cheejo ka parbhaav km kr diya jaaye to, maan samman and izzat k maamle mai to hmara thar jannat hai ji....

    जवाब देंहटाएं