सोमवार, 9 अप्रैल 2012

राजस्थानी रे बिना गूंगो राजस्थान : बारहठ




राजस्थानी रे बिना गूंगो राजस्थान : बारहठ


अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के प्रदेश महामंत्री ने कहा, जल्द ही छात्र युवा-पंचायतों का होगा आयोजन

बाड़मेर'राजस्थानी भाषा री जड़ों घणी ऊंडी है, पण इणनै हरी राखण सारूं पोणी मिळणो जरूरी है। भाषा ने मानता रे वास्ते केवल इच्छा शक्ति री कमी है।' अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के प्रदेश महामंत्री राजेंद्र बारहठ ने यहां डाक बंगले में पत्रकारों से बातचीत के दौरान यह बातें कही।

उन्होंने कहा कि साहित्यिक दृष्टि से राजस्थानी संपन्न भाषा है। संस्कृति को बचाने के लिए भाषा को बचाना जरूरी है। वर्ष 2002 में विधानसभा में सर्वसम्मति से संकल्प प्रस्ताव पारित होने के बाद भी संसद की ओर से इसको मान्यता नहीं देना दुर्भाग्यपूर्ण था। अब राजस्थान के लोग मायड़ भाषा के लिए खड़े हो रहे हैं। संघर्ष समिति के प्रयासों से आज विश्व के 30 से अधिक देशों में राजस्थानी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग जोर पकड़ रही है।बारहठ ने कहा कि राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलने से प्रशासनिक सेवाओं समेत अन्य परीक्षाओं में यहां के युवाओं को विशेष लाभ मिलेगा। इसको लेकर जल्द ही सभी जिलों में छात्र-युवा पंचायत का आयोजन किया जाएगा। वहीं आगामी संसद सत्र में समिति की ओर से प्रदर्शन किया जाएगा। बारहठ ने आंदोलन को गैर राजनीतिक बताया और कहा कि राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए बात करने वाला ही राज्य में राज करेगा। इससे पूर्व समिति के स्थानीय पदाधिकारियों की ओर से बारहठ का स्वागत किया गया। इस दौरान समिति के डॉ. लक्ष्मीनारायण जोशी, अनिल सुखाणी, रमेशसिंह ईंदा, रहमान जायडू, महेंद्र पुरोहित, रघुवीरसिंह तामलोर, भवानीसिंह कानोड़ समेत कई मौजूद थे।

बाड़मेर. अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के प्रदेश महामंत्री राजेंद्र बारहठ व स्थानीय समिति के डॉ. लक्ष्मीनारायण जोशी।

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