शुक्रवार, 30 मार्च 2012

जिले भर में .राजस्थानियों को जुबान देने की मांग की राजस्थान दिवस पर


जिले भर में .राजस्थानियों को जुबान देने की मांग की 


राजस्थान दिवस पर


बाड़मेर राजस्थान दिवस पर बाड़मेर जिले भर में अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के बेनर टेल जिला मुख्यालय सहित उप खंड मुख्ययालयो पर राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए जिला कलेक्टर और उप खंड अधिकारियो के मार्फ़त प्रधानमंत्री ,मुख्यमंत्री ,सूचना एवं प्रसारण मंत्री ,गृह मंत्री को ज्ञापन प्रेषित किये गए .समिति संयोजक चन्दन सिंह भाटी ने बताया की पुरे प्रदेश भर में राजस्थानी भाषा को संवेधानिक मान्यता देने की मांग को लेकर ज्ञापन दिए गए जिसके तहत बाड़मेर जिला मुख्यालय पर राजस्थानी बिना गुंगो राजस्थान नारे के साथ जिला कलेक्टर डॉ वीणा प्रधान को ग्यापाव सुपुर्द किया ,समिति के फकीरा खान ,रमेश गौड़ ,प्रकाश जोशी ,अनिल सुखानी ,दुर्जन सिंह गुड़ीसर,सत्तर खान ,रमेश सिंह इन्दा ,रहमान जायादू ,कबूल खान ,इन्दर प्रकाश पुरोहित ,सांग सिंह लूनू ,सहित कई कार्यकर्ताओ की उपस्थिति में ज्ञापन देकर राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की  पुरजोर मांग की गयी ,वन्ही बालोतरा में बी डी चारण बायतू में महावीर जीनगर शिव में रघुवीर सिंह तामलोर नेपाल सिंह कोटडा ,चौहटन में रहमान ,गुडामालानी में बाबूलाल मंजू ,सिवाना में के एस दाखा ,के नेत्रत्व में ज्ञापन देकर राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग की गयी ,भाटी ने बताया की ज्ञापन में लिखा हें कीजिस देश का साहित्य जगमगाता हो,वह देश अपने आप में जगमगाता है ,और इस लिए संस्कृति की जो मौलिक अभिव्यक्ति है,उसकी भाषा संवाहक होती है । बिना खुद की जुबान के राष्ट्र ,प्रदेश या व्यक्ति के स्वाभिमान का होना बडा़ असम्भव काम है ज्ञापन में लिखा हें कि, भारतीय भाषाओं के शब्द भंडार से हिन्दी बहुत समृद्ध हुई है । दुर्भाग्यवश पांच दशक बीत जाने के बाद स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती का वर्ष आ गया फ़िर भी इन पच्चास वर्षों के अन्दर जिस राजस्थानी भाषा के अन्दर आज़ादी के गीत लिखे गए थे,जिन गीतों को, जिस साहित्य को सुन कर लोगों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए,आज उस राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची के अन्दर मान्यता नहीं मिली । इस कारण से राजस्थानी साहित्य बहुत उपेक्षित हो रहा है । हम मीरा के गीत ,उसके पद को ठीक प्रकार से नहीं समझ पा रहे है । नरहरि दास,बांकीदास,चंदरबरदाई,राजिया के दूहे, और पृथ्वीराज की कविताओं का हम अभी तक इंतजार कर रहे हैं । एक विजयदान देथा ज़रूर हैं, जिनकी कहानियां सुन कर हम देश-देशान्तर में गौरव का अनुभव करते हैं । , चाहे राजस्थान हो,चाहे महाराष्ट्र हो, चाहे पश्चिम बंगाल हो, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, मध्यप्रदेश, असम में बसे हुए लगभग 8  करोड़ के आसपास राजस्थानी भाषा का उपयोग करने वाले लोग हैं, जिनकी मातृभाषा आज संविधान की आठवीं सूची का इंतजार कर रही है ।राजस्थान वासियों का और राजस्थान की भाषा बोलने वालने वालों का हक छीनने का कोई औचित्य प्रकट नहीं होता । राजस्थानी भाषा का जहां तक सवाल है, इसका अस्तित्व आठवीं शताब्दी में आया, और इस में लिखे हुए ग्रन्थ आज भी उपलब्ध हैं ।राजस्थान दूरदर्शन पर राजस्थानी भाषा के कार्यक्रमों को प्रमुखता देने की मांग भी की गयी .


 प्रधानमंत्री व केन्द्रीय गृहमंत्री के नाम राजस्थानी भाषा को संवैधानिकमान्यता की मांग के ज्ञापन दिया । साथ ही केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारणमंत्री अंबिका सोनी के नाम राजस्थान दूरदर्शन का नाम डीडी राजस्थान सेडीडी राजस्थानी करने तथा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम राजस्थानी भाषा,साहित्य, संस्कृति व शिक्षा को बढ़ावा दिए जाने संबंधी 17 सूत्री ज्ञापनदिया गया 

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