मकर संक्रांति [15 जनवरी] को देवताओं का सूर्योदय माना जाता है। यह पर्व आसुरी [नकारात्मक] विचारों को छोडकर दैवी [सकारात्मक] विचारों को अपनाने का है। डॉ. अतुल टण्डन का आलेख..
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर-संक्रांति कहलाता है। संक्रांति के लगते ही सूर्य उत्तरायण हो जाता है। मान्यता है कि मकर-संक्रांति से सूर्य के उत्तरायण होने पर देवताओं का सूर्योदय होता है और दैत्यों का सूर्यास्त होने पर उनकी रात्रि प्रारंभ हो जाती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि यह पर्व देवताओं [सकारात्मकता] का नव-प्रभात और दैत्यों [नकारात्मकता] की संध्या है। धर्मग्रंथों में मकर से मिथुन राशि तक सूर्य की स्थिति को उत्तरायण यानी देवताओं का दिन कहा गया है, इससे तात्पर्य है दैवी चेतना [सद्गुणों] की जागृति और संभवत:यही उत्तरायण के माहात्म्य का कारण है। महाभारत में उल्लेख है कि शर-शय्या पर लेटे भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी।
उत्तरायण में दिन की अवधि [दिनमान] की नित्य बढोतरी होती है, जबकि रात की अवधि [रात्रिमान] कम होने लगती है। यानी उत्तरायण में दिन क्रमश:बडे और रात छोटी होती है। दिन के बडे होने का मतलब है- ज्यादा समय तक सूर्य के प्रकाश और ताप की उपलब्धता। अतएव उत्तरायण के सूर्य को विशेष महत्व दिए जाने के पीछे प्राकृतिक कारण भी है। पृथ्वी पर जीवन के लिए सूर्य की वैज्ञानिक महत्ता छिपी नहीं है।
भौगोलिक दृष्टि से भूमध्य रेखा के उत्तर तथा दक्षिण में सूर्य की स्थिति के कारण क्रमश:उत्तरायण और दक्षिणायनहोते हैं। मकर-संक्रांति लगते ही उत्तरायण में सर्दी कम होने लगती है। शीतलहरकी प्रचंडतामकर-संक्रांति लगते ही थम जाती है। जाडे में कमी आने का तात्पर्य सूर्य की उष्णतामें वृद्धि है। इससे लोगों की चेतना जाग्रत होती है और कार्यक्षमता भी बढती है।
संसार की सभी संस्कृतियों में सूर्य को प्रकाश और ऊष्मा का देवता माना गया है। धर्म और विज्ञान, दोनों ही सूर्य की महत्ता को मानते हैं। बिजली और पेट्रोल के बढते दामों को देखते हुए नि:शुल्क सौर ऊर्जा का प्रयोग अब लोकप्रिय हो गया है।
सूर्य की मकर-संक्रांति को महापर्वका दर्जा दिया गया है। उत्तर प्रदेश में मकर-संक्रांति के दिन खिचडी बनाकर खाने तथा खिचडी की सामग्रियों को दान देने की प्रथा होने से यह पर्व खिचडी के नाम से प्रसिद्ध हो गया है। बिहार-झारखंड एवं मिथिलांचलमें यह धारणा है कि मकर-संक्रांति से सूर्य का स्वरूप तिल-तिल बढता है, अत:वहां इसे तिल संक्रांति कहा जाता है। प्रतीक स्वरूप इस दिन तिल तथा तिल से बने पदार्थो का सेवन किया जाता है। महाराष्ट्र में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिलता है। वहां तिल से बने मिष्ठान्न का वितरण करते हुए यह त्योहार मनाया जाता है। राजस्थान में सुहागिनें घेवर, लड्डू और मट्ठी अपनी सास को वायन[बायना] के रूप में देकर उनका सम्मान करती हैं। मकर-संक्रांति के दिन तीर्थराज प्रयाग के त्रिवेणी-संगम में असंख्य श्रद्धालु स्नान करके अनुचित विचारों को छोड अच्छे मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं।
उत्तरायण का सूर्य हमें दृढ, संकल्पवानऔर कर्मयोगी बनने के लिए प्रेरित करता है। उत्तरायण हमें आसुरी [नकारात्मक] वृत्तियोंको त्यागकर दैवी [सकारात्मक] गुणों को ग्रहण करने की प्रेरणा देता है। अत:मकर-संक्रांति नकारात्मकतापर सकारात्मकताकी विजय का महापर्वहै। बस जरूरत है इस त्योहार में छिपे आध्यात्मिक संदेश को समझने और उसे आत्मसात करने की।
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर-संक्रांति कहलाता है। संक्रांति के लगते ही सूर्य उत्तरायण हो जाता है। मान्यता है कि मकर-संक्रांति से सूर्य के उत्तरायण होने पर देवताओं का सूर्योदय होता है और दैत्यों का सूर्यास्त होने पर उनकी रात्रि प्रारंभ हो जाती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि यह पर्व देवताओं [सकारात्मकता] का नव-प्रभात और दैत्यों [नकारात्मकता] की संध्या है। धर्मग्रंथों में मकर से मिथुन राशि तक सूर्य की स्थिति को उत्तरायण यानी देवताओं का दिन कहा गया है, इससे तात्पर्य है दैवी चेतना [सद्गुणों] की जागृति और संभवत:यही उत्तरायण के माहात्म्य का कारण है। महाभारत में उल्लेख है कि शर-शय्या पर लेटे भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी।
उत्तरायण में दिन की अवधि [दिनमान] की नित्य बढोतरी होती है, जबकि रात की अवधि [रात्रिमान] कम होने लगती है। यानी उत्तरायण में दिन क्रमश:बडे और रात छोटी होती है। दिन के बडे होने का मतलब है- ज्यादा समय तक सूर्य के प्रकाश और ताप की उपलब्धता। अतएव उत्तरायण के सूर्य को विशेष महत्व दिए जाने के पीछे प्राकृतिक कारण भी है। पृथ्वी पर जीवन के लिए सूर्य की वैज्ञानिक महत्ता छिपी नहीं है।
भौगोलिक दृष्टि से भूमध्य रेखा के उत्तर तथा दक्षिण में सूर्य की स्थिति के कारण क्रमश:उत्तरायण और दक्षिणायनहोते हैं। मकर-संक्रांति लगते ही उत्तरायण में सर्दी कम होने लगती है। शीतलहरकी प्रचंडतामकर-संक्रांति लगते ही थम जाती है। जाडे में कमी आने का तात्पर्य सूर्य की उष्णतामें वृद्धि है। इससे लोगों की चेतना जाग्रत होती है और कार्यक्षमता भी बढती है।
संसार की सभी संस्कृतियों में सूर्य को प्रकाश और ऊष्मा का देवता माना गया है। धर्म और विज्ञान, दोनों ही सूर्य की महत्ता को मानते हैं। बिजली और पेट्रोल के बढते दामों को देखते हुए नि:शुल्क सौर ऊर्जा का प्रयोग अब लोकप्रिय हो गया है।
सूर्य की मकर-संक्रांति को महापर्वका दर्जा दिया गया है। उत्तर प्रदेश में मकर-संक्रांति के दिन खिचडी बनाकर खाने तथा खिचडी की सामग्रियों को दान देने की प्रथा होने से यह पर्व खिचडी के नाम से प्रसिद्ध हो गया है। बिहार-झारखंड एवं मिथिलांचलमें यह धारणा है कि मकर-संक्रांति से सूर्य का स्वरूप तिल-तिल बढता है, अत:वहां इसे तिल संक्रांति कहा जाता है। प्रतीक स्वरूप इस दिन तिल तथा तिल से बने पदार्थो का सेवन किया जाता है। महाराष्ट्र में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिलता है। वहां तिल से बने मिष्ठान्न का वितरण करते हुए यह त्योहार मनाया जाता है। राजस्थान में सुहागिनें घेवर, लड्डू और मट्ठी अपनी सास को वायन[बायना] के रूप में देकर उनका सम्मान करती हैं। मकर-संक्रांति के दिन तीर्थराज प्रयाग के त्रिवेणी-संगम में असंख्य श्रद्धालु स्नान करके अनुचित विचारों को छोड अच्छे मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं।
उत्तरायण का सूर्य हमें दृढ, संकल्पवानऔर कर्मयोगी बनने के लिए प्रेरित करता है। उत्तरायण हमें आसुरी [नकारात्मक] वृत्तियोंको त्यागकर दैवी [सकारात्मक] गुणों को ग्रहण करने की प्रेरणा देता है। अत:मकर-संक्रांति नकारात्मकतापर सकारात्मकताकी विजय का महापर्वहै। बस जरूरत है इस त्योहार में छिपे आध्यात्मिक संदेश को समझने और उसे आत्मसात करने की।
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