मंगलवार, 26 जुलाई 2011

हिना ने भारत आते ही पैदा किया विवाद, मंत्री से पहले अलगाववादियों से मिलीं

नई दिल्ली. पाकिस्तान की सबसे कम उम्र की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार दो दिनों के दौरे पर मंगलवार की दोपहर भारत पहुंचीं। यहां आते ही वह हुर्रियत कांफ्रेंस के 5 अलगाववादी नेताओं से मिलीं, जिस पर विवाद हो गया है। उन्‍होंने सरकारी प्रतिनिधि या अपने समकक्ष से मुलाकात से पहले अलगाववादियों से मिल कर यह विवाद खड़ा किया है।

सूत्र बता रहे हैं कि कश्मीर के कुछ अलगाववादी नेताओं से खार की मुलाकात से भारत सरकार नाराज है। केंद्र का मानना है कि खार को अपनी यात्रा के दौरान इस तरह की मुलाकातों से बचना चाहिए था। इस मुलाकात का बुधवार को होने वाली बातचीत पर भी असर पड़ सकता है।

हालांकि नई दिल्ली पहुंचते ही हिना ने उम्मीद जताई कि दोनों देश साथ-साथ आगे बढ़ सकते हैं। हिना ने कहा कि भारत-पाकिस्तान के बहुत सारे हित एक-दूसरे के भविष्य पर टिके हैं। उन्होंने कहा, 'मैं उम्मीद करती हूं कि दोनों देशों ने इतिहास से सबक सीखेंगे होंगे, लेकिन बीते हुए कल का उन पर बोझ नहीं है। हम एक अच्छे दोस्त और पड़ोसी की तरह आगे बढ़ सकते हैं। इस क्षेत्र के लिए अपनी जिम्मेदारियों को दोनों देश बखूबी समझते हैं।'

खार की बुधवार को भारत के विदेश मंत्री एसएम कृष्णा से मुलाकात होगी। इस दौरान दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली के उपाय, आतंकवाद पर भारत की चिंता और कश्मीर जैसे मसलों पर बातचीत के आसार हैं।
कौन हैं हिना रब्बानी खार
हिना रब्बानी खार पाकिस्तान की पहली महिला और सबसे कम उम्र की विदेश मंत्री हैं (यूट्यूब से लिए वीडियो में देखिए हिना के अंदाज देखने के लिए रिलेटेड आर्टिकल के लिंक पर क्लिक करें)। हिना ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री पद को ऐसे समय में संभाला है जब आने वाले दिनों में देश को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कई मुश्किल फैसले लेने पड़ सकते हैं। ३४ साल की हिना रब्बानी खार पेशे से एक कारोबारी हैं और पाकिस्तान के एक मशहूर राजनैतिक परिवार से संबंध रखती हैं। हिना लाहौर में एक पोलो क्लब भी चलाती हैं। उन्होंने अमरीका की मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी से होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई की है और साल 2003 में राजनीति में क़दम रखा जब उनके पिता ग़ुलाम नूर रब्बानी खार अयोग्य घोषित किए गए थे क्योंकि उनके पास स्नातक की डिग्री नहीं थी।

विदेश मामलों के जानकार मानते हैं कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री को जिस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, हिना रब्बानी खार को उसे पूरा करने में काफ़ी दिक़्क़त होगी क्योंकि उनके पास तजुर्बा बहुत कम है। लेकिन कुछ जानकार ये भी मानते हैं कि पाकिस्तान की पहली महिला विदेश मंत्री के बतौर उनकी वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की छवि को ओर बेहतर करने में मदद मिल सकती है।हिना ने बहुत कम उम्र में राजनीति में कदम रख दिया था। उन्होंने दक्षिण पंजाब के ज़िले मुज़फ़्फ़राबाद से दो बार चुना जीता। पहले साल 2003 में मुस्लिम लीग (क्यू) के टिकट पर और दूसरा 2008 में पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की प्रत्याशी के तौर पर उन्होंने चुनावी जीत दर्ज की थी।
परवेज़ मुशर्रफ़ के कार्यकाल में जब मुस्लिम लीग (क्यू) ने सरकार का गठन किया तो उन्होंने आर्थिक मामलों की राज्यमंत्री का पद संभाला और 2005 में आए भयंकर भूकंप में अतंरराष्ट्रीय सहायता एजेंसियों के साथ हुई वार्ताओं में उनकी बहुत भूमिका रही।
साल 2008 के चुनावों में जब पीपल्स पार्टी ने सरकार का गठन किया तो वे मुस्लिम लीग क्यू छोड़ कर पीपल्स पार्टी में शामिल हो गईं। पीपुल्स पार्टी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में भी उन्होंने आर्थिक मामलों की राज्यमंत्री का पद संभाला। हिना रब्बानी खर के लिए विदेश मंत्री का पद बिल्कुल नया है लेकिन वे पिछले पाँच महीनों से विदेश मंत्रालय से जुड़ी हुई थी क्योंकि विदेशी मामलों के राज्यमंत्री का पद उनके पास था। प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी ने इसी साल फरवरी में जब अपने मंत्रिमंडल में व्यापक स्तर पर फेर-बदल किया तो उन्होंने शाह महमूद कुरैशी को विदेश मंत्री पद से हटा दिया और हिना रब्बानी खर को विदेशी मामलों की राज्यमंत्री बना दिया।

चुनौतियां
हिना के विदेश मंत्री का पद संभालते ही उनके सामने एक बड़ी चुनौती पेश हो गई है। हिना के सामने शायद पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के सबसे जटिल कामों में से एक, भारत से बातचीत का सामना कुर्सी संभालते ही करना पड़ रहा है। पिछले कई दशकों से पाकिस्तानी की विदेश नीति सेना के नियंत्रण में है। विपक्षी पार्टी मुस्लिम लीग नवाज़ के प्रमुख नवाज़ शरीफ़ ने कुछ दिन पहले कहा था कि भारत, अफ़ग़ानिस्तान और अमरीका के प्रति पाकिस्तान की विदेश नीति पाकिस्तानी फौज के अफसर न तय करें बल्कि संसद में इन चीजों का फैसला होना चाहिए।हिना के सामने अफगानिस्तान, भारत, अमेरिका और चीन से जुड़े मुद्दें हैं।

पाकिस्तान और अमेरिका के बीच रिश्ते लगातार खराब हो रहे हैं। इसकी शुरुआत इस साल रेमंड डेविस के मामले से हुई और दोनों देशों के बीच तनाव ओसामा बिन लादेन की मई में मौत के बाद से चरम पर पहुंच गया। हाल ही में आईएसआई के एजेंट के तौर पर अमेरिका में गिरफ्तार हुए फई के मामले से भी यह तनाव बढ़ गया है। वहीं, अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी का सिलसिला भी शुरू हो गया है। ऐसे समय में अफगानिस्तान में लोकतंत्र के वजूद पर सवाल खड़े हो रहे हैं। भारत के साथ 26/11 के हमले के बाद रिश्ता पटरी पर लौट रहा था कि इसी बीच 13 जुलाई को मुंबई फिर बम धमाकों से हिल गई है। वहीं, पाकिस्तान के सबसे भरोसेमंद साथी चीन के सीमावर्ती इलाकों में उईगर समुदाय की बगावत भी पाकिस्तान और चीन के बीच तनाव का सबब बन सकती है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें