मंगलवार, 5 जुलाई 2011

मेह बरसा सांवरा, अब मत तरसा बावरा

बाड़मेर मारवाड़ में आधा आषाढ़ सूखा बीत गया। सूखे की आशंका से किसानों के चेहरों पर चिंता की लकीरें नजर आने लगी हैं। इन्द्र देव को रिझाने के लिए किसान टोटकों का सहारा ले रहे हैं। उनकी बेसब्री का कारण भी है। अन्य जिलों में शुरू हुई बारिश से उम्मीदें जगी तो कर्ज पर खाद बीज लेकर बिंजाई की पूरी तैयारी कर ली। वहीं कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि सात से दस जुलाई तक बरसात हो जाए तो कम अवधि में पकने वाली फसलें ली जा सकती हैं। खेतों को बुवाई के लिए तैयार कर, बैंकों से ऋण लेकर खाद-बीज की व्यवस्था कर मानसून की पहली अच्छी बारिश के इंतजार में बैठे किसानों के लिए एक-एक दिन मानो बरस की तरह बीत रहा है। इंद्रदेव को रिझाने के लिए किसान टोटकों का सहारा ले रहे हैं। टोटकों के रूप में कहीं गांवों में ‘बाकळे’ उछाले जा रहे हैं तो कहीं हवन का आयोजन कर इंद्रदेव को मनाने के लिए आहुतियां दी जा रही हैं। उल्लेखनीय है कि बाड़मेर में गत वर्ष मानसून ने मई में ही दस्तक दे दी थी, इसके बाद 14- व 15 जून की अच्छी बारिश में तो किसानों ने बुवाई भी कर दी थी।

शिव. क्षेत्र में बादल तो छा रहे हैं लेकिन बिना बरसे ही चले जा रहे हैं। बादलों के बावजूद ठंडी हवाएं चलने से किसान चिंतित नजर आ रहे हैं। उनकी चिंता का कारण कम वर्षा से गिरता जलस्तर भी है। इस बार किसानों को अच्छी बारिश होने से सूखे पड़े कुओं व तालाबों में फिर से पानी भर जाने व सुकाळ होने की उम्मीद है। वहीं कई गांवों के किसान अच्छी बरसात की कामना लिए मंदिरों में पूजा- अर्चना भी कर रहे हैं

चारे, पानी का संकट
गत वर्ष अच्छी बारिश के चलते गांव- ढाणियों में तालाब- नाडिय़ां लबालब हो गए थे, जिससे ग्रामीणों को अपने व मवेशियों के लिए पेयजल की चिंता नहीं रही। अब तालाब -नाडिय़ां रीतने लगी हैं, पशुधन भी पानी के लिए दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। ग्रामीण दूर-दराज से महंगे टैंकर मंगवा कर पेयजल पूर्ति कर रहे हैं। ऐसे में समय पर अच्छी बारिश नहीं हुई तो ग्रामीणों के सामने पानी का जबरदस्त संकट खड़ा हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि ग्रामीण क्षेत्र में जलदाय विभाग की ओर से की जाने वाली पानी सप्लाई से सभी ग्रामीणों को पानी नहीं मिल पा रहा है। कई जीएलआर महीनों से सूखे पड़े हैं। गत वर्ष अच्छी बारिश में लबालब हुए तालाब -नाडिय़ों के चलते ग्रामीणों को जलदाय विभाग की सप्लाई की गरज नहीं रही, पर अब तालाब सूखने के साथ पानी का संकट भी शुरू हो गया है।

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