शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

पत्रकारिता ना जाने क्यों अपनी असली ताकत, हेसियत को भुलाने पर आमादा हैं

"रोम जलता रहा, नीरो बांसुरी बजाता रहा"  
पत्रकारिता ना जाने क्यों अपनी असली ताकत, हेसियत को भुलाने पर आमादा हैं | क्या कारण हैं की जनता की समस्याओं से ज्यादा नेताओ और दूसरी ताकतों को सज़दा करने का भूत दिल्ली के बड़े मिडिया हाउस से लगा कर मेरे जिले बाड़मेर तक के पत्रकारो को चढ़ा हुआ हैं | बड़ी कोफ़्त महसूस होती हैं जब कुछ पत्रकार अपने निजी स्वार्थो की पूर्ती के लिए सांसद से विधायक तक के प्रवक्ता बन बैठ जाते हैं | थोड़े दिन पहले भड़ास फॉर मिडिया नामक एक न्यूज़ पोर्टल पर ही एक आर्टिकल पढ़ा था 'मिडिया मंडी,ख़बरें रंडी ' तब दूसरे लोगो की तरह मैंने भी सोचा था की ये क्या हेडिंग हुआ | लेकिन हालत ऐसे बने की मुझे खुद पर ही तरस आने लगा की क्यों उस भले पत्रकार को अपनी बात इस तरह से लिखनी पड़ी होगी | चलो बात मुद्दे की करता हूँ , क्यूंकि आजकल पाठक भी ज्यादा भूमिकाये देखना और पढना नहीं चाहते खैर मैं बाड़मेर का रहने वाला हूँ जहाँ पर रेत का समन्दर हैं , जो यहाँ की कई बातें खासकर पत्रकारों की असलियतो को अपने स्वभाव की तरह समेटता और उड़ाता हैं | राजस्थान के अंतिम छोर पर भारत और पाकिस्तान के 'बोर्डर' पर मैं भी पिछले करीब एक दशक से पत्रकारिता के महान पेशे से सम्बन्ध रखता हूँ यहाँ के हालत इन दिनों कुछ पत्रकारों की एकाएक बढ़ी स्वार्थ की नीतियों के कारण खराब हो गए हैं | दरअसल यहाँ पर पांच-छह बरस पहले तेल खोज कंपनी ने अपना डेरा डाला और तभी से प्रेस कांफ्रेस में मिलने वाले मोटे तगड़े उपहारों और कंपनी के द्वारा पांचवी पास पत्रकारों को अपने तेल क्षेत्र दिखने के लिए किंगफिशर एयर वेज , पांच सितारा होटलों के मजे और कंपनी के 'पर्सनल' हेलिकोप्टर से सुवाली (गुजरात का समुद्री रिफायनरी क्षेत्र) तक का सफ़र कुछ पत्रकारों को पागल किये हुए हैं  ! हालाँकि कुछ लोग जो अच्छे मिडिया ग्रुप प्रतिनिधि थे वे तो अभी भी अपनी पुरानी पत्रकारिता पर कायम हैं लेकिन कुछ पत्रकार अब भी मृगमरीचिका को मन में पाले हुए हैं  , उदाहरण भी देख लीजिये क्युकि अब उस कंपनी के कारण भले ही सरकार किसानो की लाखो बीघा जमीने बल पूर्वक छीन लें , बाड़मेर के पत्रकार ख़बर नहीं मानेंगे| इन्हें इंतज़ार हैं वापस कंपनी के उस पैकेज का जो सात सितारा भी बनेगा | यहाँ पर जो कुछ हो रहा हैं वो किसी बड़ी विध्वंसता से कम नहीं आँका जा सकता यहाँ पर कुछ साल पहले पत्रकार आमजनता के मुद्दों को लेकर इतना जोखीम उठा लेते थे की उनको नेताओ,प्रशासन की दुश्मनी का सामना भी करना पड़ता था लेकिन अब वो दिन नहीं रहे ! क्यूंकि रोम जलता रहे और नीरो बांसुरी बजता रहे की विचारधारा पत्रकारों के ज़ेहन में समा चुकी हैं | अब छोटी मोटी पत्रकार वार्ताएं बाड़मेर के पत्रकारों को नहीं भाती, जहाँ लज़ीज़ पांच सितारा होटलों का खाना हो वो पत्रकार वार्ताएं विथ फोटो छपनी तय हैं | दरअसल आलोक तोमर जैसा बेबाक़ हर कोई बन नहीं सकता और ऐसे मैं पत्रकारिता के बुरे दिन तो आने हैं ही ,  यही नहीं बड़ी से बड़ी खबरें अब यहाँ 'मोल-भाव' माफ़ करें नाप-तोल के बाद ही प्रकाशित और प्रसारित होती हैं अब अंदाज़ा लगाना शायद आसान हो जायेगा कि क्या हश्र पत्रकार और पत्रकारिता का हो चुका है | इस प्रकार से मिडिया का निस्तेज़ होना यहाँ के पत्रकारों को अमीर तो बना रहा है साथ ही गुटबाजी भी हावी हैं ! आये दिन पत्रकार बाड़मेर की पुलिस , असामाजिक तत्वों से अपमानित होते है तो कई बार पिट भी जाते हैं | और उसके बाद यहाँ पर होता हैं पुलिस का पत्रकारों को उनकी 'औकात' दिखाने का दौर शुरू | मामले दर्ज़ तक नहीं होते और जो होते हैं वो नेताओं की सिफारिश के बाद होते हैं | बाड़मेर में ऐसे कई पत्रकार हैं जो बेवजह राजकार्य में बाधा और मारपीट के झूठे मामलो में पुलिस के द्वारा फसाए जाने के बाद अब पेशियों पर कौर्ट के चक्कर काट रहे है और पत्रकार उनका साथ देने की बजाय उनके मज़े लूटते नज़र आते हैं | ऐसी स्थिति के बाद कभी-कभी कोई मामला निपट भी जाए तो वो भी नेताओं के आशीर्वाद से | अब आप ही सोचिये की क्या असली पत्रकारिता का यही चेहरा हैं जिसे बड़े गर्व से हम 'संविधान का चौथा स्तम्भ ' कहा करते हैं !

दुर्ग सिंह राजपुरोहित
जिला प्रभारी
न्यूज़ एक्सप्रेस एवं एचबीसी न्यूज़ राजस्थान
बाड़मेर (राजस्थान)

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