मंगलवार, 19 जुलाई 2011

अफसरों की मज़ा गरीबों को सजा

अफसरों की मज़ा गरीबों को सजा !


बाड़मेर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना में रोजगार की गारण्टी के साथ-साथ पंद्रह दिन के भीतर भुगतान की गारण्टी का भी प्रावधान है, लेकिन बाड़मेर जिले में बीते वित्तीय वर्ष में जरूरतमंद गरीब व्यक्ति तक भुगतान पहुंचाने में जमकर कोताही बरती गई। करीब 10.72 करोड़ रूपए का भुगतान निर्घारित समयावधि में नहीं हुआ, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इस मामले में किसी भी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई। 

बाड़मेर जिले में बीते वित्तीय वर्ष में महानरेगा के तहत करीब पौने दो लाख मस्टरोल जारी हुए, जिसमें से 15,127 मस्टरोल में नियोजित श्रमिकों को समय पर भुगतान नहीं मिला। श्रमिकों को भुगतान मिलने में देरी होने पर उच्चाधिकारियों ने परियोजना अधिकारियों को लताड़ पिलाई तो उन्होंने इसका दोष्ा अनुबंध पर लगे कनिष्ठ तकनीकी सहायकों व ग्राम रोजगार सहायकों के सिर पर मढ़ा, लेकिन किसी भी नियमित सरकारी कार्मिक यथा ग्रामसेवक व स्वयं परियोजना अधिकारी ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली। जबकि महानरेगा का रिकॉर्ड ऑनलाइन है और इसकी बेहतर मॉनिटरिंग संभव है।

कोताही का कच्चा चिटा
जिन मस्टरोल के भुगतान में देरी हुई, उनमें से 12010 मस्टरोल का भुगतान पंद्रह से तीस दिन के भीतर किया गया। 2735 मस्टरोल का भुगतान इकतीस से साठ दिन की समयावधि में हुआ। 262 मस्टरोल के भुगतान में इकसठ से नब्बे दिन लगे। वहीं 120 मस्टरोल ऎसे रहे, जिनका भुगतान तीन माह की देरी से हुआ।

कोताही में चौहटन सबसे आगे
श्रमिकों के भुगतान में कोताही बरतने के मामले चौहटन सबसे आगे है। चौहटन में 3955, बायतु में 3770, शिव में 2319, बाड़मेर में 2308, सिवाना में 986, बालोतरा में 935, सिणधरी में 851 के भुगतान में देरी हुई। पंचायत समिति धोरीमन्ना में केवल तीन मस्टरोल के भुगतान में देरी हुई

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