बुधवार, 20 जुलाई 2011

अपने देश में वेश्‍यावृत्ति को कानूनी दर्जा मिल जाएगा

नई दिल्‍ली. अगर सबकुछ ठीक ठाक रहा तो वह दिन दूर नहीं जब अपने देश में वेश्‍यावृत्ति को कानूनी दर्जा मिल जाएगा। सुप्रीम कोर्ट सेक्‍स वर्कर्स को सम्‍मान के साथ उन्‍हें अपना पेशा चलाने के लिए 'माकूल हालात' पैदा करने की तैयारी में है। जस्टिस मार्कंडेय काटजू की अगुवाई वाली बेंच ने इस बारे में सलाह मांगी है कि सेक्‍स वर्कर्स को को इज्‍जत के साथ अपना पेशा चलाने के लिए क्‍या शर्तें होनी चाहिए। इसी बेंच ने इससे पहले सेक्‍स वर्कर्स के पुनर्वास की भी बात की थी।

कोर्ट ने सम्‍मान के साथ जिंदगी जीने के अधिकार को संवैधानिक अधिकार माना है। अदालत ने कुछ वरिष्‍ठ व‍कीलों और  गैर सरकारी संगठनों का एक पैनल गठित किया है जो सेक्‍स वर्कर्स के सामने आने वाली समस्‍याओं की पड़ताल करेगा और उनके मूल अधिकारों के संरक्षण के लिए उठाए जाने वाले कदमों के बारे में सलाह देगा।

हालांकि वेश्‍वावृत्ति अपने आप में गैरकानूनी नहीं है लेकिन सेक्‍स वर्कर्स से जुड़ा कोई कानून नहीं होने की वजह से इस पेशे में शामिल लोगों का अकसर परेशान किया जाता है। पैनल को उन सेक्‍स वर्कर्स के अधिकारों की रक्षा किए जाने के बारे में राय देने को कहा गया है जो इस पेशे से जुड़े रहना चाहते हैं।

वेश्‍यावृत्ति पर पहले क्‍या हुआ?

उच्चतम न्यायालय ने करीब साल भर पहले अपनी एक टिप्पणी में कहा कि महिलाओं की तस्करी रोकने की दिशा में सेक्स व्यापार को कानूनी मान्यता देना एक बेहतर विकल्प हो सकता है। इससे यौनकर्मियों के पुनर्वास में भी मदद मिलेगी। एक गैर सरकारी संगठन 'बचपन बचाओ आंदोलन' की जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि जब आप यह कहते हैं कि वेश्यावृत्ति दुनिया का सबसे पुराना पेशा है और आप इस पर लगाम लगाने में नाकाम हैं तो आप इसे कानूनी मान्यता क्यों नहीं दे देते हैं?
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ही 'ओलेगा तेलिस बनाम बंबई नगर निगम' मामले में यह फैसला सुनाया था कि कोई भी व्यक्ति जीविका के साधन के रूप में जुआ या वेश्यावृत्ति जैसे गैर कानूनी और अनैतिक पेशे का सहारा नहीं ले सकता।


 

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