रविवार, 17 जुलाई 2011

पावागढ़ शक्तिपीठ














पावागढ़ शक्तिपीठ
काली माता का यह प्रसिद्ध मंदिर माँ के शक्तिपीठों में से एक है। शक्तिपीठ उन पूजा स्थलों को कहा जाता है, जहाँ सती माँ के अंग गिरे थे। पुराणों के अनुसार पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित हुई सती ने योगबल द्वारा अपने प्राण त्याग दिए थे। सती की मृत्यु से व्यथित शिवशंकर उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटकते रहे। इस समय माँ के अंग जहाँ-जहाँ गिरे वहीं शक्तिपीठ बन गए। माना जाता है कि पावागढ़ में माँ के वक्षस्थल गिरे थे|
जगतजननी के स्तन गिरने के कारण इस जगह को बेहद पूजनीय और पवित्र माना जाता है। यहाँ की एक खास बात यह भी है कि यहाँ दक्षिण मुखी काली माँ की मूर्ति है, जिसकी दक्षिण रीति अर्थात तांत्रिक पूजा की जाती है।
इस पहाड़ी को गुरु विश्वामित्र से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि गुरु विश्वामित्र ने यहाँ काली माँ की तपस्या की थी। यह भी माना जाता है कि काली माँ की मूर्ति को विश्वामित्र ने ही प्रतिष्ठित किया था। यहाँ बहने वाली नदी का नामाकरण भी उन्हीं के नाम पर ‘विश्वामित्र’ किया गया है। इसी तरह पावागढ़ के नाम के पीछे भी एक कहानी है। कहा जाता है कि इस दुर्गम पर्वत पर चढ़ाई लगभग असंभव काम था। चारों तरफ खाइयों से घिरे होने के कारण यहाँ हवा का वेग भी चहुँतरफा था, इसलिए इसे पावागढ़ अर्थात ऐसी जगह कहा गया जहाँ पवन का वास हो। 
यह मंदिर गुजरात की प्राचीन राजधानी चंपारण के पास स्थित है, जो वडोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। पावागढ़ मंदिर ऊँची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। काफी ऊँचाई पर बने इस दुर्गम मंदिर की चढ़ाई बेहद कठिन है। अब सरकार ने यहाँ रोप-वे सुविधा उपलब्ध करवा दी है, जिसके जरिये आप पहाड़ी तक आसानी से पहुँच सकते हैं। यह सुविधा माछी से शुरू होती है। यहाँ से रोप-वे लेकर श्रद्धालु पावागढ़ पहाड़ी के ऊपरी हिस्से तक पहुँचते हैं। रोप-वे से उतरने के बाद आपको लगभग 250 सीढ़ियाँ चढ़ना होंगी, तब जाकर आप मंदिर के मुख्य द्वार तक पहुँचेंगे।
नवरात्र के समय इस मंदिर में श्रद्धालुओं की खासी भीड़ उमड़ती है। लोगों की यहाँ गहरी आस्था है। उनका मानना है कि यहाँ दर्शन करने के बाद माँ उनकी हर मुराद पूरी कर देती है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें