शनिवार, 23 जुलाई 2011


भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम सैलानियों की तरह दुर्ग का भ्रमण करके लौट गई। 

जैसलमेर
 पुरातत्व विभाग कहने को तो दुर्ग संरक्षण के लिए काफी गंभीर है लेकिन धरातल पर देखा जाए तो ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है। दुर्ग में क्षतिग्रस्त मकानों में रहने को मजबूर स्थानीय जनता को पुनर्निमाण के लिए स्वीकृति तो दूर आरयूआईडीपी को सीवरेज बिछाने की भी स्वीकृति नहीं दी जा रही है। सूत्रों के अनुसार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इस संबंध में पहले यह निर्धारित किया जा रहा है कि अब तक दुर्ग में किए गए छोटे -मोटे कार्यों को अवैध बताया जाए और आगे से इस प्रकार के कार्य दुर्ग में न हो, उसके बाद ही स्वीकृति दी जाएगी। किले के सर्वेक्षण के लिए पिछले 8 सालों से नेशनल कल्चर फंड के बैंक खाते में साढ़े छह करोड़ रुपए का बजट पड़ा है मगर इस बजट से अभी तक किसी तरह का कार्य शुरू नहीं हो सका है। इन वर्षों के दौरान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से कई सर्वे, स्टडी व योजनाएं बनाई गई साथ ही स्थानीय प्रशासन व राज्य सरकार के साथ बैठकों के दौर भी चले लेकिन नतीजा सिफर रहा। गौरतलब है कि किले की जनता खतरे में रह रही है। दुर्ग की त्रिकुट पहाड़ी में तीन फॉल्ट जोन है। मगर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा अभी तक सर्वे व रिसर्च ही किया जा रहा हैं, संरक्षण के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ है। इस दौरान पुरातत्व के अधिकारी बदल जाते हैं साथ ही कलेक्टर व नगरपालिका प्रशासन भी बदल जाता है। 

इन्होंने माना हो रही है देरी
 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की टीम के साथ आई नेशनल कल्चर फंड की प्रतिनिधि यामिनी मोबाय ने स्वीकार किया कि सोनार किले के संरक्षण कार्य में देरी हो रही है। जबकि बजट 8 वर्षों से उनके खातों में पड़ा है। उन्होंने बताया कि सोनार किले के संरक्षण के लिए नोडल एजेंसी नेशनल कल्चर फंड को बनाया गया है। इसके लिए केंद्र सरकार ने चार करोड़ रुपए और वल्र्ड वॉच मोन्यूमेंट ने ढाई करोड़ रुपए मुहैया करवाए हैं।
 


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