शनिवार, 9 जुलाई 2011

दो जून की रोटी के बदले बन्धक...बन्धुआ मजदूरी प्रथा आजादी के 64 साल बाद भी कयम

दो जून की रोटी के बदले बन्धक

चन्दनसिह भाटी
 
बाडमेर- राजस्थान के सीमावर्ती  बाडमेर जिले में बन्धुआ मजदूरी प्रथा आजादी के 64 साल बाद भी कयम हैं,,यह स्वयं सरकार कबुल कर रही हैं।देद्गा भर में केन्द्र और विभिन्न रा ज्यों की सरकारें बन्धुआ मजदूरी समाप्त करने का दावा करती हैं।लेकिन ठीक इसके विपरीत सीमावती्र बाडमेर जिले के सरकारी आंकडो के अनुसार साढे आठ हजार बन्धुआ मजदूर परिवार बन्धक श्रमिक के रूप में कार्य्र कर रहे हैं।जिसमें ५४५९ परिवार बी पी एल तथा ३०९४ गैर बी पी एल परिवार हैं।जो बन्धक श्रमिक हैं।यह आंकडा चौंकाने वाला हैं। जों जिला प्रशासन बाडमेर की सरकारी वेब साईट पर उपलब्ध हैं।

खबर अनुसार बालोतरा पंचायत समिति में १३३२ बी पी एल,५४० गैर बीपी एल,बाडमेर में ५९१ बी पी एल ओर १४७ गैर बीपी एल,बायतु में सर्वाधिक १४८५ बी पी एल ,४३५ गैर बीपी एल, सहित जिले की समसत आठों पंचायत समीतियों में कुल साढे आठ हजार परिवार बन्धुआ श्रमिक परिवार के रूप में चिन्हित हैं। यह आंकडा प्रशासन की जिला परिषद की वेब साइट पर उपलब्ध हैं। जहा जिला प्रशासन हमेशा यह दावा करता हैं कि बन्धुआ मजदूरी प्रथा जिले में समाप्त हो चुकी हैं।वहीं जिला परिषद बाडमेर द्धारा जारी किए गये आंकडो से स्पष्ट हैं कि बाडमेर जिले के ८५५३ परिवार आज भी बन्धुआ मजदूरी का दंश भोग रहे हैं।बाडमेर जिले में बी पी एल परिवारों के चयन के लिए सरकारी स्तर पर कराए गसें सर्वे में यह चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया हैं।जिला परिषद द्धारा इस सूची में में महिला और बाल श्रमिकों का आंकडा २४३९२ दर्शाया गया हैं।बहरहाल बाडमेर जिले में जागीरदारी प्रथा की समाप्ति के साथ विभिन्न सरकारों ने बन्धूआ मजदूरी प्रथा पूर्ण रूप् से समाप्त होने का दावा किया था।

आधुनिकता की इस दौड में आज भी साढे आठ हजार परिवार बन्धुआ श्रमिकों के रूप् में कार्यरत हैं इससे अधिक शर्मनाक राज्य सरकार और जिला प्रशासन के लिए क्या हो सकता हें।श्रम विभाग जहॉ जिले में बन्धुआ मजदूर का आंकडा जीरो बता रहा हैं वहीं प्रशासन श्रम विभाग के खोखले दावों का पिटारा खोल रहा हैं।इस जिले के पाकिस्तान सरहद से सटे सीमावती्र गांवों में आज भी बन्धुआ मजदूरी , प्रथा धडल्ले से जारी हैं।दलित वर्ग के परिवार आज भी प्रभावशाली परिवारो के यहा दो जून की रोटी के बदले बन्धक श्रमिक के रूप में बेगार प्रथा का निर्वाहन कर रहे हैं।वहीं जिलाप्रशासन का कोई अधिकारी इस सम्बन्ध में अपनी जबान खोलना नहीं चाहते।जब सरकारी आंकडों में जब साढे आठ हजार परिवार बन्धुआ परिवार हैं,तो इन परिवारों की वास्तविक संखया का अन्दाजा लगायाजा सकता हैं।

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