शुक्रवार, 24 जून 2011

जैसलमेर पर्यटन स्थलों की विरासत अब संकट में .... पटवा हवेली



जैसलमेर पर्यटन स्थलों की विरासत अब संकट में .... पटवा हवेली




















जैसलमेर। अद्भुत, अतिसुन्दर, आश्चर्य जनक...। स्वर्णनगरी भ्रमण पर आने वाले सैलानियो के मुख से ये शब्द पटवा हवेली को देखकर अनायास निकल ही पड़ते हैं। पुरातत्व विभाग के अधीनस्थ इन हवेलियो का ही यह आकर्षण है कि जैसलमेर आने वाले देशी-विदेशी सैलानी पटवा हवेली देखे बिना नहीं लौटते।

गत दस सालो मे हवेली की राजस्व आय पांच गुणा बढ़ी है। कलात्मक सुंदरता व बारीक नक्काशी कार्य के लिए विश्वस्तरीय पहचान बना चुकी पटवा हवेलियो मे से एक का झरोखा व पत्थर गिरने की घटना के दो महीने बीत जाने के बाद भी पुरातत्व विभाग की नींद नहीं खुली है। यह हादसा ऑफ सीजन मे हुआ था, जब वहां कोई सैलानी मौजूद नहीं था। दरअसल पर्यटन स्थल ही जैसलमेर की प्राण वायु हैं।


लगातार उपेक्षा के चलते ये पर्यटन स्थलों की विरासत अब संकट में आ गई है। अब चंद रोज बाद पर्यटन सीजन का आगाज होने वाला है। बावजूद इसके आज हालत यह है कि इन ऎतिहासिक हवेलियों के पत्थर के तकिए हिल रहे हैं और हवेलियों की लकड़ी की छत कमजोर पड़ गई है। जब एक साथ कई सैलानी छत पर खड़े रहते हैं तो आए दिन कम्पन्न महसूस की किया जा सकता है। हवेली के सामने वाले भाग की छत सबसे कमजोर हालत में है। इन धरोहरो को मरम्मत की दरकार है, हैरत तो यह है कि सैलानियों के लिए खतरे की घंटी बजाने वाली इन हवेलियों की सुध लेने में पुरातत्व विभाग लापरवाही बरत रहा है।

कौन ले सुध
विभागीय सूत्र बताते हैं कि पटवा हवेली संख्या 3013 के जीर्णोद्धार के लिए 25 लाख रूपए की राशि खर्च की गई है। बावजूद इसके यह हवेली सैलानियों के लिए नहीं खोली गई है। यह हवेली लंबे समय से जर्जर थी। सूत्र बताते हैं कि जैसलमेर शैली का काम जयपुर के ठेकेदारों से करवाया गया, जिससे काम में कोई गुणवत्ता नहीं आई। हकीकत यह है कि पुरातत्व व संग्रहालय विभाग के अधिकारी हवेलियों की सुध लेने के लिए कोई निर्णय नहीं ले रहे हैं। बरसाती पानी की निकासी नहीं होने से हालात खतरनाक बने हुए हंै।

ये हुए प्रयास
< वर्ष 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने राज्य सरकार को निर्देश देकर हवेलियों का अधिग्रहण करवाया।
< राज्य सरकार ने पटवा हवेलियों के समूह को संरक्षित स्मारक घोषित किया।
< तीन पूरी हवेलियां व एक हवेली का 42 प्रतिशत भाग खरीदकर हवेलियों का अधिग्रहण कर अपने कब्जे में ले लिया था।
< हवेली संख्या 3013 आगे की ओर झुक जाने और जर्जर हालत में होने के कारण वर्ष 2006 -07 मे हुआ जीर्णोद्धार।

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