मंगलवार, 7 जून 2011

दो दिन में लड़की को पेश करें या एसपी खुद हाजिर हों-हाईकोर्ट


बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में पुलिस द्वारा जांच में लापरवाही बरतने को गंभीरता से लेते हुए जांच प्रक्रिया पर नाराजगी जताई 

जोधपुर। जालोर
राजस्थान हाईकोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण के एक मामले में हाईकोर्ट के आदेश की पालना नहीं करने तथा पुलिस जांच में अकर्मण्यता व लापरवाही सामने आने पर मंगलवार को पुलिस इन्वेस्टिगेशन के तौर तरीकों पर नाराजगी प्रकट की है। अदालत ने 9 जून तक भगाई गई लड़की को पेश करने अथवा इसमें विफल रहने पर जालोर एसपी राहुल बारहठ को स्वयं पेश होने के आदेश दिए हैं। यह आदेश न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी तथा अवकाश कालीन न्यायाधीश गोविंद माथुर की खंडपीठ ने प्रार्थी गुडाबालोतान निवासी लीलाधर खत्री की ओर से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई में दिए। 

बिना बुलाए आ गए पुलिस अधीक्षक 
खंडपीठ में मंगलवार को सुबह 9 बजे हुई सुनवाई में आहोर थाना अधिकारी बुद्धाराम विश्नोई सिर्फ केस डायरी लेकर उपस्थित हुए। जब खंडपीठ ने उनसे मामले की और जानकारी के बारे में पूछा तो उन्होंने अनुसंधान अधिकारी के साथ में नहीं होने का कहते हुए कुछ समय देने की मांग की। इस पर दुबारा 12 बजे शुरू हुई सुनवाई तक थानाधिकारी ने जालोर पुलिस अधीक्षक राहुल बारहठ को बुला लिया। मामले की प्रगति से अनभिज्ञ बारहठ जब अदालत के सवालों का जवाब नहीं दे पाए तो खंडपीठ ने जांच की प्रक्रिया पर ही नाराजगी जताई व अदालत में मौजूद लोक अभियोजक कल्याण राम विश्नोई से दो दिन में भगाई गई लड़की को अदालत में पेश करने अथवा पुलिस अधीक्षक बारहठ को पेश होने के आदेश दिए। 

यह था मामला 
याचिका कर्ता के अधिवक्ता मनोज पारीक के अनुसार 7 मई 2010 को जालोर जिलान्तर्गत गुडा बालोतान निवासी प्रार्थी लीलाधर की 15 वर्षीय पुत्री रेखा को उसी के गांव में रहने वाला लड़का राजू छीपा भगा कर ले गया। प्रार्थी के बार बार पुलिस थाना आहोर के चक्कर काटने के बाद 12 मई 2011 को गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की, लेकिन मामले की जांच करने में आनाकानी करते रहे। इस पर प्रार्थी ने 3 जून 2011 को हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की जिसमें हाईकोर्ट ने पुलिस को 7 जून को भगाई गई लड़की को पेश करने के आदेश दिए थे।

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