शनिवार, 11 जून 2011

न तोल न मोल फिर भी गहने अनमोल











न तोल न मोल फिर भी गहने अनमोल
कला के संरक्षण में सरकारी उदासीनता से आहत हैं परिवार
अब भी माटी का बना गले का हार, निबोली, कड़ा, कंठला, झंबरी, मादलिया आदि गहना पहनने की है परंपरा
बाड़मेर माटी से बने गहने। सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन बाड़मेर के बिसाला गांव में कई परिवार आज भी माटी के गहने बनाते और पहनते हैं। आजादी से पहले की बात करें तो बाड़मेर को अभिशाप माना जाता था, यहां सोना-चांदी तो दूर कोसों तक अन्न व पानी के लाले पड़ते थे। ऐसे में अभावों में जीने के साथ सुख और दुख को ये अपनी मर्जी से ढाल लेते थे। सोने-चांदी के न सही माटी के गहनों से ही शृंगार कर लिया। माटी के गहने बनाने की सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा यहां आज भी कायम है।
बिसाला क्षेत्र में पहुंचते ही मुस्लिम कुम्हार परिवार के मर्द अपने हाथों से इन माटी के गहनों को तराशते हैं तो औरतें मनभावन धागों में इन्हें पिरोती व सजाती नजर आ जाएंगी। दरअसल कसीदा, नक्काशी, पेच वर्क के साथ ही माटी के गहने बनाने का हुनर भी सरहद के उस पार से हिंदुस्तान में आई। जिस मिट्टी से बर्तन बनाए जाते हैं उसी मिट्टी से ये गहने भी बनाए जाते हैं। गहनों के लिए सबसे पहले मिट्टी को कपड़े से छानते है उसके बाद मिट्टी को विभिन्न गहनों का आकार देना इन कुम्हार परिवार के पुरुषों की रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है।धाक कई फैशन शो तक बाड़मेर के कुछ इलाकों में बनने वाले माटी के गहनों का चलन इस इलाके में भले ही बहुतायत में ना हो लेकिन इनकी धमक देश के कई फैशन शो में नजर आ चुकी है। बरसों तक माटी के गहनों को नफासत से सजाने वाले जामिन और उनकी पत्नी लूणी बताते हैं कि उनके हाथों से बने गहने गोवा, मुंबई, भोपाल, अहमदाबाद, बेंगलुरु और शिल्पग्राम उदयपुर में आयोजित फैशन शो का हिस्सा बन चुके हैं। जामिन के मुताबिक इन आयोजनों में मॉडल को जहां कपड़े अलग-अलग संस्कृति के पहनाए जाते थे, लेकिन नख से शिख तक इनके सौंदर्य में चार चांद लगाने का काम माटी के बने गहनों ने ही किया। अब तक कई जगह अपने हुनर की वजह से कई इनामों से नवाजे जा चुके जामिन वर्तमान में हो रही इस कला की बेकद्री से आहत हैं। 
कहीं चमक न हो जाए खत्म
कुम्हारों का पाड़ा के अमीन के मुताबिक कभी इन गहनों पर की गई महीन कारीगरी और चमक से इन परिवारों की आर्थिक स्थिति का आकलन किया जाता था। लेकिन अब पहले जैसी बातें नहीं रही। सरकारी उदासीनता और लोगों का घटता रुझान अगर ऐसे ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब ये गहने केवल किताबों के पन्नों और फोटो में ही देखने को मिलेंगे।
लुभाती है बारीक कारीगरी 
सोने-चांदी के गहनों जैसे ही इन मिट्टी के गहनों में भी बारीक कारीगरी नजर आती है। जिससे एक गहना पूरा होने में एक दिन भी लग जाता है। इन गहनों को बरतनों की तरह आग में पकाया जाता है और पकने के बाद इन पर सोने और चांदी जैसा रंग करने का भी रिवाज है।

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